शरद पूर्णिमा और खीर का महत्व : अमृत बरसाती रात्रि में आरोग्य और आस्था का संगम
डॉ शिवेश्वर दत्त पाण्डेय

भारतीय परंपरा में शरद पूर्णिमा को अमृत बरसाने वाली रात्रि कहा गया है। यह वह समय होता है जब वर्ष भर की तपती गर्मी और वर्षा के बाद वातावरण निर्मल हो जाता है। आकाश में श्वेत, पूर्ण चंद्र अपनी पूर्ण आभा बिखेरता है, और ऐसा कहा जाता है कि उस चंद्रकिरण में अमृत तत्व प्रवाहित होता है।
धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी आकाश से उतरकर यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है — अर्थात कौन व्यक्ति भक्ति, साधना और श्रद्धा में लीन है। जो व्यक्ति रात्रि में जागरण करता है, भक्ति करता है और शुद्ध भाव से भगवान का स्मरण करता है, उस पर लक्ष्मी-कृपा बरसती है। इसी कारण इस रात्रि को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस दिन का सबसे प्रमुख परंपरागत व्यंजन है — खीर।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चाँदनी में रखी गई खीर अमृतमयी हो जाती है। विज्ञान भी इस मान्यता का समर्थन करता है — इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और उसकी किरणों में विशेष प्रकार का शीतल, औषधीय तत्व पाया जाता है जो शरीर में ऊर्जा और मानसिक शांति प्रदान करता है। खीर में दूध और चावल जैसे सात्त्विक तत्व होते हैं, जो चंद्रकिरणों के संपर्क में आने पर स्वास्थ्यवर्धक गुणों से युक्त हो जाते हैं।
रात्रि में चाँदनी में रखी यह खीर अगली सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है। यह केवल भोजन नहीं, बल्कि शुद्धता, भक्ति और आरोग्य का प्रतीक है। भक्त इस खीर को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को अर्पित करते हैं, और फिर प्रसाद स्वरूप सभी में बाँटते हैं।
आस्था और विज्ञान का यह अद्भुत संगम बताता है कि भारतीय संस्कृति केवल पूजा की नहीं, बल्कि जीवनशैली और स्वास्थ्य की भी मार्गदर्शक है।
शरद पूर्णिमा की यह पावन रात हमें यह संदेश देती है कि —
“प्रकृति की गोद में ही ईश्वर और आरोग्य दोनों का वास है।”
डॉ शिवेश्वर दत्त पाण्डेय समूह सम्पादक



