
प्राचीन भारतीय वांग्मय और वेदों में जहां चंद्रमा मनसो जातो कहकर इसे मन का अधिष्ठाता कहकर संबोधित किया गया है वहीं चंद्रमा को वेदों में “पति: औषधिनाम्” भी कहा गया है — अर्थात् सभी औषधियों के स्वामी या प्रभु।इस प्रकार चंद्रमा को मन के स्वामी के साथ ही साथ सभी प्रकार की औषधियों का स्वामी भी माना जाता है।यही कारण है कि शरद पूर्णिमा के चन्द्र का महत्व उसके औषधीय गुणों के कारण और भी बढ़ जाता है।इतना ही नहीं लीलाधर श्रीकृष्ण द्वारा शरद पूर्णिमा की रात्रि में ही रासोत्सव मनाने के कारण तथा आदिकवि महर्षि वाल्मिक के अवतरण से इस तिथि और निशा का महत्व लोकोत्तर हो जाता है।
चंद्र की महत्ता का वर्णन करते हुए ऋग्वेद (10.85.5) में उल्लिखित है कि—
“चन्द्रमाः मनसो जातः, चक्षोः सूर्योजायते।
चन्द्रमाः औषधीनां पतिः।”
अर्थात चन्द्रमा मन से उत्पन्न हुआ, सूर्य ने नेत्रों का रूप लिया, और चन्द्र सभी औषधियों का अधिपति है।
यह वैदिक वचन केवल काव्य नहीं, वैज्ञानिक सत्य भी है — क्योंकि चन्द्र किरणों में विशिष्ट जीवाणुनाशक तथा स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव पाया गया है।इसी कारण आयुर्वेद,होम्योपैथ और प्राकृतिक चिकित्साशास्त्रियों ने शुक्ल पक्ष और कृष्णपक्ष की तिथियों के घटते बढ़ते क्रम से उपचार की प्रणालियों का विस्तृत वर्णन किया है।
वस्तुत: भौगोलिक वैशिष्ट्य के रूप में देखा जाय तो शरद ऋतु का आगमन वर्षा और ग्रीष्म के संधिस्थल पर होता है। इसी ऋतु की पूर्णिमा को शरद् पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार यह वह रात्रि है जब चन्द्रमा अपने सोलहों कलाओं से पूर्ण होता है, और उसकी किरणों में अमृत तत्व प्रवाहित होता है।
गरुड़ पुराण में कहा गया है —
“शरद् पूर्णिमया रात्रौ यः पिबेच्चन्द्रमण्डलम्।
तस्य रोगा न जायन्ते सर्वदेहसुखं लभेत्॥”
अर्थात जो व्यक्ति शरद् पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा का दर्शन कर अमृतमयी किरणों का सेवन करता है, उसके शरीर में रोग उत्पन्न नहीं होते।
आयुर्विज्ञान में माना गया है कि शरद पूर्णिमा की रात को वायुमण्डल में आर्द्रता कम और चन्द्र किरणें तीव्रतम होती हैं।जब चन्द्रप्रकाश दूध या खीर पर पड़ता है तो उसमें सोडियम और जिंक जैसे सूक्ष्म तत्त्वों का संतुलन बढ़ता है, जिससे वह अमृततुल्य पौष्टिक आहार बन जाता है।
इसी कारण लोक में यह परम्परा रही है कि —“खीर को चन्द्रमा की किरणों में रखकर सेवन करना औषधिसम प्रभाव देता है।वैज्ञानिक दृष्टि से यह किरणें शरीर की शीत-ऊष्मा संतुलन प्रणाली को स्थिर करती हैं और मन की शान्ति प्रदान करती हैं।
मन का अधिपति भी चन्द्र ही है। अतः इस दिन ध्यान, जप, साधना या ब्रह्मचर्य पालन से मनशुद्धि और चेतना का प्रकाश बढ़ता है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण का रासोत्सव भी इसी कारण हुआ — क्योंकि उस समय प्रकृति और चेतना दोनों अपने चरम सौंदर्य पर होती हैं।
शरद पूर्णिमा की रात निद्रा त्याग कर चन्द्र दर्शन करना शुभ माना गया है।गाय के दूध की खीर को चाँदनी में रखकर सेवन करना तन-मन को शीतल और स्वस्थ रखता है।इस दिन ध्यान, नामस्मरण, उपवास आदि करने से पित्त दोष शांत होता है।आधुनिक चिकित्साशास्त्र के अनुसार यह रात डीटॉक्सिफिकेशन और मानसिक संतुलन की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
चन्द्रमा केवल काव्य और कल्पना का विषय नहीं, बल्कि औषधियों का स्वामी, मन का नियंत्रक और जीवन-संतुलन का प्रतीक है।इसलिए “पति: औषधिनाम्” का अर्थ केवल वैदिक नहीं, पूर्णतः वैज्ञानिक भी है।शरद् पूर्णिमा हमें स्मरण कराती है कि प्रकृति, शरीर और आत्मा का संतुलन ही सच्चा स्वास्थ्य है, यही ऋषियों की औषधि-दृष्टि थी और यही आज के विज्ञान का संदेश भी।तभी तो महाकवि कालिदास ने भी अपने ग्रंथों में यात्येक्तो अस्त शिखरम पति: औषधिनाम कहकर औषधियों के स्वामी चंद्र की लोकोत्तर महिमा का गुणगान किया है।
लेखक – डॉ. उदयराज मिश्र
(शिक्षाविद एवं साहित्यकार)



