
मैंने मां से कहा मां खाना दे निकाल के
मगर मां रो पड़ी बर्तन में हाथ डाल के
बेटा आज तूं आंसू पी कल रोटियां दूंगी
जैसे मां बोल रही थी समंदर खंघाल के
नगर में कहीं झोपड़ी कहीं थी कोठियां
लोग अलग-अलग हैं न कि एक डाल के
जिंदगी में छोड़ जिसके पिता चले गए हों
मां बातें किया करती है अक्सर कुदाल के
मैंने मां से कहा मां अब तुम कुदाल दे मुझे
तूने मुझे राहें दिखा दी अंगुरी सम्हाल के।
विद्या शंकर विद्यार्थी रामगढ़, झारखंड
रचना मौलिक स्वरचित



