
ये समय का पहिया चलता जाय रे,
खुशियों के रंग कहाँ टिक पाय रे।
सपनों के शहर सूने रह गये,
आसमान में तारे भी थक जाय रे।
हर सुबह नई उम्मीद लाती,
पर शाम में आँसू छुपाती।
मन के बाग में काँटे ही काँटे,
फूल कहाँ खुल पाते, पूछ जाय रे।
दुनिया की भीड़ में खो गये हम,
दिल के रिश्ते अधूरे रह गये हम।
सांसों में भी अब गूंजते सवाल,
कहाँ गया वह प्यार का कमाल रे।
पर फिर भी चलते रहना होगा,
अंधेरों में भी दीप जलाना होगा।
समय का पहिया चाहे जो भी लाये,
सच्चाई और प्यार को अपनाना होगा।
कुलदीप सिंह रुहेला
सहारनपुर उत्तर प्रदेश



