साहित्य

सोशल मीडिया की माया

सुधीर श्रीवास्तव

व्यंग्य
ये सोशल मीडिया भी बड़ा अजीब है
किसी को भी चैन से रहने नहीं देता
औपचारिकताओं की चाशनी में डुबोए रहता है,
बड़ी सफाई से हमारी भावनाओं का
हृदय परिवर्तन कर देता है।
सौ खून भी जैसे माफकर पाक-साफ कर देता है,
और तो और हमें श्रेष्ठ औलाद के आवरण में
सबके बीच जबरन लाकर पेश कर देता है।
अब आप कहेंगे – आप कहना क्या चाहते हैं?
बातों की जलेबी बनाने पर आमादा क्यों हैं?
तो जनाब! तनिक धैर्य तो रखिए
और ध्यान से मेरी बात सुनते हुए
मेरी जलेबी का रस तो चूसिए।
ईमानदारी से बताइए कि सोशल मीडिया पर जो लोग
अपने स्वर्गीय माँ बाप को बड़ी शिद्दत से याद करते हैं,
एक पल भी न भूलने की दुहाई देते हैं
उन्हें याद कर घड़ियाली आँसुओं की आड़ में
फोटो लगाकर, विनम्र श्रद्धांजलि देकर
बेहिसाब ढिंढोरा पीटते हैं,
वो सच के कितना करीब होता है
क्या हम-आप सब नहीं जानते ?
जीते जी जिस माँ- बाप की उपेक्षा की
उन्हें अपमानित करने के साथ
घुट-घुटकर जीने को मजबूर किया,
उनके अपने ही घर में उन्हें पराया कर दिया,
उन्हें थोड़ा सा समय तक न दे सके
प्यार से दो शब्द भी नहीं बोले,
उनके अंतर्मन में झाँकने तक की जहमत नहीं उठाई।
स्वार्थ और स्वच्छंदता की आड़ में
सुख-सुविधाओं से वंचित किया,
दो वक्त का भोजन, दो जोड़ी कपड़े और
दवाइयों के इंतजाम की आड़ में
जाने क्या-क्या जिन्हें सुनाया?
जाने कितने मां- बाप को इन्हीं औलादों ने
बड़े गर्व से वृद्धाश्रम तक पहुँचाया।
तो कुछ की मृत्यु का समय भी
इन्हीं औलादों की कारगुजारियों से
सच मानिए -समय से पूर्व ही आया,।
इतना तक ही होता तो और बात थी
कुछ ने माँ-बाप के अंतिम संस्कार में
शामिल होने का कष्ट तक नहीं उठाया
और समयाभाव का बहाना बनाया,
तो किसी का बड़े ने, किसी का छोटे ने
विवशतावश किसी तरह निपटाकर गंगा नहाया।
अरे भाई! ये कलयुग है
यह बात भी हम-आप जैसी औलादों ने
अपने-अपने माँ-बाप को बताया,
जब औलादों के होते हुए भी
अंतिम संस्कार पड़ोसी, मोहल्ले या रिश्तेदारों ने कराया।
तो कुछ का अंतिम संस्कार
किसी तरह लावारिशों की तरह
जैसे-तैसे प्रशासन ने निपटाया।
और सोशल मीडिया पर देखिए
तो ऐसा लगता है कि हमने तो
श्रवण कुमार को भी पीछे छोड़ दिया,
अपने जीवित माँ-बाप का मृत्यु तक इतना ख्याल किया।
शुक्र है कि हममें इतनी तो शर्म अभी शेष है
जो हम खुद को राम नहीं कहते
पर क्या राम से कम नाम हमने कमाया?
ये सोशल मीडिया का युग है साहब
सच तो यह है कि हमें तनिक भी शर्म नहीं आया,
क्योंकि हमने तो लाइक, कमेंट के अनुसार
सर्वश्रेष्ठ औलाद होने का भारत रत्न पाया।
मगर हमें अपनी औकात तब समझ में आया
जब हमारी औलादों ने भी हमारे साथ
यही किस्सा पूरी ईमानदारी से दोहराया
और हमें पुरखों का ही पाठ पढ़ाया
कि जो जिसने बोया, उसके हिस्से में वही तो आया,
यह ग़लत भी कैसे हो सकता है भाया,
ये हैं सोशल मीडिया की माया
जिसे आइना भी नहीं देख पाया।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

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