साहित्य

स्वास्तिक गणेशजी का स्वरूप

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’

स्वास्तिक गणेशजी का स्वरूप,
स्वास्तिक की दो अलग-अलग
रेखायें श्री गणपति जी की पत्नी
रिद्धि-सिद्धि देवियों को दर्शाती हैं।

घर के बाहर स्वास्तिक प्रतीक व
शुभ -लाभ लिखने का प्रयोजन
यह होता है कि घर में सुख-शांति
और समृद्धि सदैव वृद्धिरत होती रहे।

शुभ- लाभ लिखने का भाव यह है
कि भगवान से लोग प्रार्थना करते हैं
कि उनके घर की संपदा और धन
सदा बढ़ता रहे, लाभ प्राप्त होता रहे।

शुभ-लाभ लिखना सुंदर तो है,
परंतु दिखावा अधिक होता है,
दरवाज़े का यह शुभ प्रतीक है,
मन में भी यही हो तो अच्छा है।

मन में लिखे शुभ-लाभ शुभ भी है,
व यही शुभ, लाभ भी हो जाते हैं,
आओ इस दीपावली में मन में भी
आदित्य शुभ – लाभ लिख लेते हैं।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ

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