आलेख

त्योहार सामाजिकता सार्थकता का संदेश

संजय प्रधान

घर से घर मिलकर बनता है कस्बा और कस्बे से शहर‌, फिर देश। फिर हम सबको परिवारों की सुंदर शालीनता,वो घर की परम्परा जिसमें हम सब मिलजुल कर रहते हैं एक साथ सारे त्योहार मनाते हैं। यह सामाजिकता सार्थकता का संदेश है।
अभी पांच दिवसीय त्योहारों की श्रंखला बीती। आजकल चल रही है छठ्ठ पूजा, जिसमें छट्ठ मैया की पूजा की जाती है, सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है, पृथ्वी,जल, सूर्य और आकाश का सुंदर मिलन। प्रकृति से मनुष्य आस्था का मिलन कितना अनुपम दृश्य होता है उस दिन। सत्य तो यही था कि पहले छठ पूजा उत्सव पहले पूर्वांचल से जुड़ा था।
अब जैसे-जैसे उत्तराखंड से पूर्वांचल, बिहार, झारखंड, बंगाल के लोग मिलने लगे तो हमारी परंपराओं से ये त्यौहार भी मजबूती से जुड़ गया। धार्मिक और सामाजिक संदेश।

छठ्ठ पूजा से तालाबों, नदियों,पोखरों नहरों की साफ की जाती है। संदेश है की सुरक्षित शुद्ध पर्यावरण हेतु साफ सफाई और जल्द प्रदूषण नहीं होना चाहिए। वन,जंगल,जमीन जो हमें पुरखों से मिली है ये हमारी नहीं आगामी पीढ़ी हेतु धरोहर है‌। जिसे हमें उन्हें सौंपना है। हम तो मात्र इसके रक्षक हैं।
वैज्ञानिक इस लिए भी कहा जा सकता है कि धरती,वायु,जल सूर्यदेव जीवन और ऊर्जा के प्रतीक हैं।
सूर्य देव हमें ऊर्जा देते हैं उनका प्रकाश अंधकार दूर कर देता है, ऊर्जा से शरीर तरोताजा और मजबूत रहता है।
फूलों,फलों और प्रकृति को जीवित रखता है।
कुछ वर्ष पहले ऋषिकेश में यह सुअवसर मिला था । अवसर छट्ठ पूजा की शाम का दृश्य था और गंगा जी में पूजन एक दम आलौकिक शाम को पश्चिम कि ओर जाता सूरज नीले आसमान में लालिमा । गंगा जी के तट पर सूप में सजे फूल फल सब्जी,हरी कलगी वाले गन्ने, चमकते दमकते चकोतरे और हवा में महकती सुगंध, श्रृंगार से सुसज्जित स्त्री,पुरुष,असंख्य हाथों से दिया जा रहा अरघ ।मुख से प्रा‌र्थना और बंद आंखों में सुंदर भविष्य के पूरे होने की कामना।
आह यूं लगा जैसे मैं भी उस दृश्य का हिस्सा बन गया और सूर्य भगवान का आशीर्वाद मुझे भी मिल गया।
संजय प्रधान
देहरादून।

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