
लघु कथा
डाॅ.रामशंकर चंचल
आज, उसे नाना घर जाना था, कुछ आयोजन था, मां के पर्व पर, अपनी मां के साथ जा रहा था, मेरा दोस्त है वह और वो तीनों पोते, कोई एक पास रहता है अक्सर मेरे साथ, मेरा वक्त अच्छा कट जाता है, व्यर्थ बात सोचने का समय नहीं मिलता , कई बार वो मुझे थका देते हैं फिर भी अच्छा लगता हैं जिन्दा हूँ इन तीनों दोस्तों से सक्रिय हूं अद्भुत
खैर साहब, उसे जाना था बात दो दिन की है ऐसा भी नहीं शाम को
वापस आ भी सकता है फिर भी
दोनों पोते के जाने से दिन कुछ खाली खाली लगता, पर उसने जो
अद्भुत किरदार निभाया, अपनी दोस्ती का, चौका देता है दिल को रूह को सचमुच वंदनीय हैं ईश्वर रूप बच्चें, तभी उन्हें साक्षात ईश्वर कहां जाता है
हां तो वह जा रहा था, कुछ दूर उसकी मां खड़ी थी , उसकी अंगुली
थामें, वह बहुत देर तक, मुझे पीछे मुड़ देखता रहा, उस मासूम की आंखों में , उसके जाने से, मुझे हो रहा कुछ देर के लिए ही सही खालीपन का अहसास देखा, सचमुच वंदनीय हैं सचमुच प्रणाम है उस ईश्वर रूप बच्चें को सभी को
ईश्वर है सत्य है देखा जा सकता है
उन संवेदन शील और अथाह प्यार प्रेम और अपनेपन का अहसास लिए
दिलों में , वह दिल वह आत्मा जरूरी नहीं बच्चों में हो , जरूरी नहीं कोई जाति धर्म में हो, ईश्वर है वहीं निवास करता है जहां संवेदनशील मन और आत्मा हो हर पल वहीं विराजमान होता हैं, बाकी आदमियों में कभी कभी जब वो याद करते है तब बस
काश दुनियां में हर इंसान बिना बोले , बिना कुछ कहे केवल अहसास से सब कुछ समझ जाता
कितनी खूब सूरत दुनिया होती
सच तो यह है कि, अहसास वो थर्मामीटर है जो सचमुच सब कुछ बता देता है, बिना कुछ कहे केवल मोन रहकर, जैसा मेरा दोस्त मेरा पोता समझ गया और दे गया यह अद्भुत सत्य कथा, यादगार कथा, जीवंत कथा, सजीव कथा हर शब्द सत्य विचारणीय प्रेरणा स्त्रोत
आखिर, उसने मेरा खालीपन भर दिया और मुस्कराते हुए चला गया
प्रणाम इन अहसास को सत् सत् प्रणाम


