साहित्य

उससे मिलना

राकेश चन्द्रा

बहुत दिनों के बाद उससे मिलना मन को छू गया;
उसे देखा था जब वह बहुत छोटी थी- बिल्कुल गुड़िया जैसी;
आज वह शादी-शुदा है, पति हैं,
बच्चे भी हैं;
आज वह खुशहाल जीवन जी रही है,
इतना ही काफ़ी है- मेरे चेहरे पर
हँसी बिखेरने कै लिए;

मैं इसलिए भी खुश हूँ कि इतनी सम्पन्नता के बाद
भी नहीं बदली है उसकी फितरत,
उसकी सम्मोहक उन्मुक्त हँसी,
और अविश्वसनीय सरलता;
आज भी है वह निहायत शालीन-
मैं सोचता हूँ कि
कैसे वह निपटती होगी
उन मर्यादाविहीन लोगों से जो
घूमा करते हैं निशंक हमारे सबके बीच;

अच्छा लगता है ऐसे लोगों को अपने बीच पाकर जो आश्वस्त करते हैं
कि हमारी दुनिया आज भी सुन्दर है;
उनकी मौजूदगी अहसास कराती है कि
अच्छाई-बुराई की सतत चलने वाली लड़ाई में कौन जीतेगा,यह सुनिश्चित है।
कापीराइट @राकेश चन्द्रा

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