27600/ मासिक वेतन पर पिछले अठारह सालों से बिना किसी वेतन वृद्धि के BHU में रखा गया वैज्ञानिक”
समाज में मानस परिवर्तन के लिए कर रहा है कार्य और उम्मीद की किरण बन गया है
वाराणसी । चिकित्सा विज्ञान संस्थान में ट्राईबल रिसर्च सेंटर के नाम पर चल रहे केंद्र में एक वैज्ञानिक का पद पिछले 18 साल से सृजन है। इस पद पर नियुक्त किए गए वैज्ञानिक से पिछले 18 वर्षों से बिना किसी वेतन वृद्धि के काम लिया जा रहा है और शुरुआती तौर पर इस पद को 3 वर्षों बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में समायोजित करने का विकल्प भी खुला हुआ रहा है, परंतु ऑफिस की लालफीता शाही और यूजीसी और एचआरडी की नीतियों का सही ढंग से पालन न होने के कारण इस पद पर रखे गए वैज्ञानिक का समायोजन आज भी नहीं किया जा रहा है। देशभर में उम्मीद की किरण जगाने वाले “वैज्ञानिक” “डॉक्टर सत्य प्रकाश” काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पीएचडी जिनके वनस्पति विज्ञान में शोध को अंतर्राष्ट्रीय पत्र में स्थान मिला है और जिनके केंद्र के काम पर बिसियों पेटेंट जारी हुए हैं के “पद” पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले लोग भी आज उनके काम की प्रशंसा करते हैं। होप टॉक के माध्यम से महामना मानस संतति खोज अभियान में काम कर रहे वैज्ञानिक के कार्यों को भारत वर्ष के लोग जानते हैं और उनके प्रोजेक्ट MEET में सहयोगी भी हैं मगर जिस केंद्र में उनके काम और पद के अनुरूप वेतन के विसंगति को सुधारने की बात आती है वहां अधिकारी बगले झाकने लगते हैं।
पद पर काम करने वाले को समान वेतन का अधिकार होना चाहिए और इसके लिए उन्होंने न्यायालय का भी रास्ता चुना है मगर 2014 से उच्च न्यायालय में भी जबाब सवाल लगाने में UGC और BHU के वकील भागे फिर रहे हैं। कोर्ट के बार बार पूछने पर भी सही जबाब नहीं लगा रहे जबकि केंद्र को लेकर हज़ारों दस्तावेज मौजूद हैं। कोर्ट की सहृदयता का नाजायज फायदा BHU और UGC के वकील वैज्ञानिक के योगदान को गिराने में लगा रहे हैं और उसको एक असिस्टेंट और चपरासी जितना मान दिया जा रहा है। अब तो साथ में काम करने वाले सह कर्मचारी भी वैज्ञानिक को हेय दृष्टि से देखते हैं जबकि वैज्ञानिक के इस स्थिति का जिम्मेदार BHU प्रशासन और UGC के अधिकारी हैं। आज 15 नवंबर को भी कोर्ट में अर्जेंट मैटर हेतु जल्दी सुनवाई कराने के लिए वैज्ञानिक का निवेदन किया गया है जिसको न्यायालय क्या समय देता है इसका इंतजार है।
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