आलेख

आदिवासी जीवन , किसी संत सा त्याग, धैर्य और सुकून सा जीवन

डॉ रामशंकर चंचल

आदिवासी जन जीवन, सचमुच बेहद सहज सरल और सादगी लिए किसी संत, महात्मा सा त्याग धैर्य और सुकून सा जीवन जीने में विश्वास रखता है
कम साधन में जीवन व्यतीत करते हुए सदा सुखी जीवन जीते हैं और हमेशा स्वस्थ रहते हुए खुश प्रसन्न रहते हैं मौसम कैसा भी हो इनके जिस्म पर अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल सकता है इतना ऊर्जा वान और आदि हो जाते है कि कोई भी मौसम हो आसानी से सामना करते हुए जीते हैं
ऐसा लगता है जैसे यह संतों की बस्ती है और हर कोई त्याग धैर्य का आदि हो स्वस्थ और मस्त जीवन जीती हैं
अर्धनग्न बदन, तन पर दो हाथ कपड़ा, बिना चप्पल के , बांस कवेलु की छत के नीचे अपनी झोपड़ी में मौसम को धूल चटाते हुए सदा खुश और प्रसन्न रहते हैं, पीने का पानी का एक मटका, एक दो चार पाई रात गुजारने के लिए, एक या दो खटिया, मिट्टी का चूल्हा, चंद लकड़ियों से बना हुआ खाना खा कर खुश रहते हुए सतत् कर्म शील होते हैं
इनके घर परिवार को साधनों को जीवन व्यापम के देख कर लगता हैं कैसे जीते होगे पर सच यह है कि हजारों लाखों सम्पन्न लोगों से कहीं ज्यादा बेहतर सुखद अहसास करते हुए जीते हैं तभी तो हर पल मस्त और प्रसन्न रहते हैं
इन्हें देख लगता हैं कि, व्यर्थ की इच्छा पले हुए हम जीते हैं बेवजह दुःख समेटे प्राप्त सुख को भूल कर और सुख और सुख की तलाश में दौड़ते हुए, जीवन पर्यन्त यही चाह लिए कभी शायद सुख सुकून से जीते ही नहीं है
सच तो यह है कि जीवन की सदा ही खुश प्रसन्न रहने की अद्भुत परिभाषा कोई इन से सिखे तो सचमुच जीवन सार्थक कर जाता है और सदा सुखी महसूस करता है
सुखी जीवन का कितना बड़ा, ज्ञान लिए हम सब को प्रेरणा देते हैं और कहे जाते हैं यह अज्ञानता और अनपढ़ लोग हैं जबकि सत्य यह है कि इनके पास अद्भुत खजाना है सुखी और स्वस्थ और मस्त जीवन दर्शन का नाम है आदिवासी जन जीवन
सक यह है कि सारी सोच चिंतन पर हमारे सुख सुकून है , सच तो यह है कि संतोष से बड़ा कोई धन दौलत नहीं है
प्रणाम करता हूं जीवन दर्शन को इनके संतों जैसे सही सार्थक जीवन जीने की अद्भुत कला साधना और सोच चिंतन को

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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