आलेख

आदिवासी पिछड़े अंचल के गांव ईश्वरीय प्रकृति की, अद्भुत छांव

डॉ रामशंकर चंचल

मध्य प्रदेश के आदिवासी पिछड़े अंचल झाबुआ के आदिवासी जन और उनकी अद्भुत सोच चिंतन जीवन दर्शन , का कारण प्रमुख यह है कि यह सब गांवो में रहती हैं सदियों से और मेरे जिले के गांव यानी ईश्वरीय उपहार, ईश्वरीय अहसास , पेड़, धरती खुला नीला मोहक आसमान, पक्षी की कलवार
पौधों,पत्तों का लहराते हुए संगीत
नदी नालों का पानी और बहती शुद्ध हवा सब कुछ ईश्वर अहसास लिए रोम रोम में बस जाती हैं और व्यक्ति उन्हीं की तरह सहज सरल और सौम्य प्रसन्न हो जीते हैं
सच तो यह है कि प्रकृति ही ईश्वर है सत्य है परम सत्य , तभी भगवान राम हो या शिव अक्सर देखा गया है
उन्हें नदी, पड़ों को, पूजते हुए, क्यों नहीं , होना भी चाहिए मानव मात्र पशु पक्षी सभी प्राणी के लिए सदा ही समान रूप से हवा, पानी और धूप, सुख सुकून देती हैं यह प्रकृति
कोई भेद नहीं, कोई जाति धर्म राजनीति नहीं, और ईश्वर या भगवान वहीं है जो मानव मात्र पशु पक्षी सभी प्राणी के लिए वरदान हैं और सामान सुख सुकून देता है
यह है मेरा गांव और यहां निवास कर रहे भोले भाले सहज सरल प्रकृति की तरह सादगी लिए सभी को सुख सुकून देते हुए सदा ही प्रसन्न हो जीते इंसान

आज हम देखते है, ईश्वरीय प्रकृति को भूल गए हैं जबकि प्रकृति ही ईश्वर है सत्य स्वीकार करना चाहिए जिस राम शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं वो खुद ही प्रकृति की पूजा अर्चना करते हैं और उसे देवता की तरह आदर और सम्मान देते हुए पूजते है

जो आदिवासी जन सारा जीवन उन्हीं देवत्व प्रकृति के साथ रहते हुए बीता देते हैं तो स्वाभाविक रूप से उन में प्रकृति की तरह सादगी सहजता सरलता और अपनापन होगा तभी तो कड़ी मेहनत और परिश्रम कर अनाज सस्ते दाम में देश को भेंट कर सुखद अहसास करते हुए जीते हैं हम सब से कहीं अधिक बहुत अधिक सुख सुकून महसूस करते हुए

 

काश यह अद्भुत सत्य शहरों में रहने वाले सभी को समझ में आता तो सचमुच जीवन सार्थक हो जाता और सदा ही सुख सुकून महसूस करते हुए जीवन व्यतीत करते और मानव मात्र पशु पक्षी सभी प्राणी को सदा ही अपना समझ प्यार स्नेह और साथ देते यह सब होता तो फिर कहां पैदा होता राग , द्वेष, छल कपट और जाति धर्म जैसे सड़ी मानसिकता का बैराग अलाप जिसने आज मानव मानव में कितनी दूरियां पैदा कर रखीं हैं जो सचमुच बेहद विचारणीय हैं पर स्वार्थ में अंधे हो जी रहा आज से कोई सार्थक या अच्छी उम्मीद करना व्यर्थ है
बस लिखना था उस ईश्वर का आदेश महसूस हुआ सदा की तरह लिख दिया बाकी सब कुछ राम जाने ईश्वर जाने

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश में

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