साहित्य

आदमी ख़ुद

कनक

 

आदमी ख़ुद चला सादगी के बिना
फ़िर जुदा जो हुआ आशिक़ी के बिना।।//१//

जिन्दगी में कभी रौशनी है नहीं
हौंसला रख जमी चासनी के बिना।।//२//

दौर है आजकल रौशनी का यहां
जिन्दगी हल नहीं रौशनी के बिना।।//३//

फूल मुरझा गए याद में जल गये
हम नहीं रह रहे मात पी के बिना।।//४//

इश्क़ हम भी करे तुम करो खुश रहो
जिन्दगी में कुछ नहीं हमनशी के बिना।।//५//

मत करो तुम कभी भी बुरा जिन्दगी
जिन्दगी हल नहीं दिलकशी के बिना।।//६//

कोई पीता नही है दूसरों के लिए
जीता है वह सदा आशिक़ी के बिना।।//७//

कनक

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