साहित्य

आल्हा छंद में एक गीत

लक्ष्मण लड़ीवाला 'रामानुज'

 

स्वर्ण शिखर पर धर्म ध्वजा हो, वही राम का सुंदर धाम ।
मंदिर की पहचान ध्वजा से, फ़हराती यह आठों याम ।।

सरयू का पावन जल जिनका, चरणों का नित करे प्रखार ।
मातु जानकी लखन सिहत सब,भरे हृदय में मम उद्गार ।।
आन-बान की शिखर ध्वजा यह, जहाँ विराजे प्रभु श्रीराम ।
मंदिर की पहचान ध्वजा से, फहराती यह आठों याम ।।

सदियों तक संघर्ष किया तब, आया फिर पावन दिनमान ।
राम राज्य सी करे कल्पना, वही देश का श्रेष्ठ विधान ।।
धर्म ध्वजा की रक्षा करना, जन नायक का है सद्काम ।
मंदिर की पहचान ध्वजा से, फहराती यह आठों याम ।।

भक्ति भावना जागृत करना, रखना दिल में नहीं म्लान ।
संत तपस्वी ऋषि मुनियों का, प्रभु चरणों में रहता ध्यान ।।
दिखलाते बजरंग बली ही,दिल में प्रभु की छवि अभिराम ।
मंदिर की पहचान ध्वजा से, फहराती यह आठों याम ।।

लक्ष्मण लड़ीवाला ‘रामानुज’

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