
शीर्षक – आओ आतंक और आतंकियों को कुचल दें
हमने कैसे यह विषधर, अपने गले लगाये हैं
जिन्होंने सदा से ही गीत, गद्दारी के गाये हैं
कुत्ते तो फिर भी, पालने वाले का कर्ज निभाते हैं
ये आतंकवादी तो न जाने, कैसी माँओं के जाये हैं
सपोलों के जहर की जीभ काट दो, गरुड बन कर
गरुड़ारूण अब होना होगा, चक्र सुदर्शन धर कर
अरुणोदय से पहले, इन कालनेमियों का वध कर दो
फिर भारत वैभव भाग्य जगा दो, नर- नारायण बन कर
धैर्य संयम अमन अहिंसा सही जाये, कब तक
प्रलय आ जाये या पयोधि सूख जाये, तब तक
राम – कृष्ण का संयम भी लक्ष्य हेतु टूट गया था
हम हाथ बाँध रखेंगे, भारत टूट न जाए जब तक ?
अरे बजरंगी बन करो गर्जना, गद्दारों की लंका में आग लगा दो
जवानियों की रवानियों में, राष्ट्र भक्ति का अभिनव राग जगा दो
हम अतुल शक्ति के आराधक, आतंकी आघात नहीं सहते
हम देवों ऋषि मुनियों की संतानें, प्रतिघात भयंकर करते
मातृभूमि की साधना में, पल पल प्राणों की आहुति करते
माता को जो ललकारे, उनको क्षण एक में चीर कर रखते
गात हमारा नश्वर है, जय जय भारत की कहते करते जीते मरते
अटल अमर आराधक हम, वेष बदलने अनंत में आते जाते रहते
भारत माता की जय- जय भारत – वन्देमातरम
चन्द्रप्रकाश गुप्त “चन्द्र” ( बुंदेला )
ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक
अहमदाबाद,गुजरात



