साहित्य

आपकी दुआ ने मेरी डोली थाम ली

दिनेश पाल सिंह *दिलकश*

बाबुल, आज मेरी डोली उठी है,
पर दिल मेरा रोया जाता है…
आपके बिना ये पल अधूरा,
हर खुशी भी तन्हा लगता है…

दुल्हन के रूप में मैं सजी हूँ,
पर आँखों में धुंध सी छाई—
सलाखों के पार जो आपने,
दुआ भेजी… वही सहारा बन आई।

बाबुल… आपकी दुआ ने मेरी डोली थाम ली,
दूरी ने दिल पर परतें घाव की डाल दी।
पर मैं टूटी नहीं हूँ, बस संभल रही हूँ,
आपकी सीख ही मेरा आँचल सँभाल रही है।

मेहँदी में जब उभरा ‘बाबुल’,
हाथ काँपकर थम जाते थे…
आपके बिना सात फेरे भी
कुछ सूने-सूने लग जाते थे…

सब कहते हैं, “बिटिया, मुस्काओ”,
पर मुस्कान कहाँ से लाऊँ मैं?
आपकी आवाज़ जो साथ नहीं,
तो खुद को कैसे समझाऊँ मैं?

बाबुल… आपकी दुआ ने मेरी डोली थाम ली,
मेरी हर धड़कन को उम्मीद की रौशनी दे दी।
आज भले आप दूर सही, पर मुझमें आप ही बसते,
मेरे हर कदम में आपकी परछाइयाँ ही चलतीं।

विदाई का पल आया जब,
मेरी रूह तक काँप उठी ।
माँ ने आँसू पोंछ दिए पर,
मैं भीतर ही भीतर टूट पड़ी ।

काश आप दरवाज़े पर खड़े,
मुझे आशीष देते जाते ।
काश एक बार गले लगाकर,
मेरे डर को अपने में दबाते ।

बाबुल… आपकी दुआ ने मेरी डोली थाम ली,
मेरे आँसूओं को भी शक्ति वाणी दे दी।
सलाखें बस देह को रोके हैं,
दिल तो आपके संग ही है…
मैं जहाँ भी जाऊँगी बाबुल—
आपकी बेटी, आपकी ही रहेगी हमेशा।

दिनेश पाल सिंह *दिलकश*
चन्दौसी जनपद संभल उत्तर प्रदेश

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