
दूर बहुत दूर
एकांत में, दुनिया से कोसों दूर
बैठ कर, तुम्हें याद करना
और करते रहना
अच्छा लगता हैं
अच्छा लगता हैं
पेड़ो की पत्तियों की
सरसराहट और पक्षियों का
कलबर करता स्वर
जैसे तुम यही हो
कही इन्हीं के बीच
और मुझे देख कर
प्रसन्न हो, जीत गुनगुनाते हुए
हिलोरे मार
साथ बनी हुई हो
अच्छा लगता हैं यह सब
अच्छा लगता हैं
अपनी ही मस्ती में
चलते हुए
सुनसान सड़क पर दस्तक देते
गीत गुनगुनाते हुए
जैसे तुम हो साथ,साथ
मेरे पास , और हम
उस वीरान, खुश सूरत
जंगल में , धूम रहे है पड़ों से
बहते पानी से
खुले आसमान से
बात करते हुए
कभ,कभी
चुप हो जाते
एक दूसरे के ख्याल में
खो जाते
कितना जिन्दा लगता हैं
साथ सचमुच
बहुत ही अच्छा लगता हैं
प्रणाम करता हूं उस ईश्वर
शक्ति प्रकृति को
जो सदा ही तुम्हारी
उपस्थित का अहसास
कराती हुई छाई है
मन और मस्तक में
सुख सुकून देती
सचमुच कभी कभी क्यों
अक्सर अच्छा लगता हैं
दूर बहुत दूर
एकांत में दुनिया से कोसों दूर
बैठ तुम्हें याद करना
और करते रहना
अच्छा लगता हैं
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश




