साहित्य

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस

पूनम त्रिपाठी

घर की दीवारों पर
टंगी नहीं होती उनकी थकान,
चेहरे पर मुस्कान रख
मन की बातें छिपा लेते हैं जान।

कंधों पर जिम्मेदारियों का
अदृश्य-सा बोझ उठाए,
फिर भी हर रिश्ते में
संबल बनकर निभाते है

न रोने का हक,
न कमजोरी दिखाने की छूट,
फिर भी हर मुश्किल में
सबसे आगे खड़े होते हैं
सम्पूर्ण ताक़त के साथ।

पिता, पति, भाई,
दोस्त और बेटा बनकर,
हर रूप में देते हैं
सुरक्षा, सम्मान और सहारा भरकर।

आज का दिन
उन सारे पुरुषों के नाम,
जो अपनेपन की ऊष्मा से
भरते हैं जीवन के धाम।

आपके प्रयास, आपकी मेहनत,
आपकी संवेदनाएँ—
सब मूल्यवान हैं,
सब सम्माननीय हैं।

पूनम त्रिपाठी
गोरखपुर ✍️

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