साहित्य

अपनो ने ही देश में

संजय पाण्डेय "सरल"

कैसे भूले दर्द दिए जो………….अपनो ने ही देश में,
अपने घर से हमे निकाला……..अपनो ने ही देश में,
बोटी बोटी नोच रहे थे….बनकर हैवान जल्लादो सा,
सिसकियां ना सुनी किसी ने.जी, अपनो ने ही देश में,
कैसे भूले दर्द दिए जो…….

मस्जिदों से हर पल बस, धमकियां सुनाई जाती थी,
लाशों पर लाशे बिछती,लाशों के ढेर लगाई जाती थी,
असी गछि पाकिस्तान,बटव रोअसत बटनेव सान,
ये आवाजे रोज हमे,पल पल,हर पल बतलाई जाती थी,
हिंदुओ कश्मीर छोड़ दो, नारे गूंजे अपने ही देश में,
कैसे भूले दर्द दिए जो……..II १ II

चारों ओर बस करुण पुकार के, चीत्कार सुनाई देते थे,
अपने बनकर साथ जो रहते,उनके दुत्कार सुनाई देते थे,
हांथ जोड़कर विनती की, कि ना लूटो हमको बेगाने सा,
जहाँ भी देखे वहां हमे बस,हर जेहादी नीच दिखाई देते थे,
गोली के बल बस रौंदा व लूटा, हमको अपनों ने ही देश में,
कैसे भूले दर्द दिए जो……..II २ II

गिरिजा टिक्कू को आरे से, जेहादियों ने काट दिया,
सर्वानंद कौल व उनके बेटे को,मार पेड़ो पर बांध दिया,
तिलक से चमड़े को हटा,आंखो को शरीर से अलग किया,
मरे हुए को फिर गोली मारी फिर फंदे पर टांग दिया,
ऐसे उनको कितने दर्द दिए है, अपनों ने ही देश में,
कैसे भूले दर्द दिए जो……..II ३ II

ऐसे कितनी लिखूं कहानी, .शब्द मेरे कम पड़ जायेंगे,
आंखे रोती,कलम है रोती, क्या कैसे लिख पाएंगे,
निज आन, मान,शान पर क्यों यू इतरा रहे हो तुम,
छोड़ रामायण,गीता,क्यों हिंदुत्व से कतरा रहे हो तुम,
देख लिया कश्मीर,बंगाल,देख रहे हो बांग्लादेश,
फिर भी देखो जूं न रेंगे,किस किस को भरमा रहे हो तुम,
अरे धर्म पूछकर गोली मारी, अपने ही देश में..

कैसे भूले दर्द दिए जो………….अपनो ने ही देश में,
अपने घर से हमे निकाला……..अपनो ने ही देश में,
बोटी बोटी नोच रहे थे….बनकर हैवान जल्लादो सा,
सिसकियां ना सुनी किसी ने.जी, अपनो ने ही देश में,
कैसे भूले दर्द दिए जो…….

जब बंगाल के हिंदुओं पर अत्याचार हो रहो हो तो वो बांग्लादेश में है नहीं,जब कश्मीर ने हिंदुओं पर अत्याचार हो तो वो पाकिस्तान में तो नहीं है,तो ये कविता वहीं से निकलती है, आप सभी के बीच रखता हूँ…

संजय पाण्डेय “सरल”

जौनपुर, उत्तर प्रदेश

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