साहित्य

बाल कहानी “वे दो बारहसिंगे”

सुषमा श्रीवास्तव

रक्षा के घर के पास 1 किलोमीटर के फासले पर चिड़ियाघर था। जिस कारण उसका अक्सर अपने बच्चों के साथ वहांँ घूमने के लिए जाना हो जाता था ।एक दिन की बात है,वह लोग घूमने गए थे इत्तफाक से से उसी दिन वहांँ एक मादा बारहसिंगे ने दो जुड़वाँ शावकों को जन्म दिया था। शैशवावस्था में वो बच्चे हिरण जैसे ही दिखते थे ।रक्षा के बच्चों को वह बड़े प्यारे लगते थे। धीरे धीरे उनमें और बच्चों में दोस्ती सी हो गई ।बच्चों ने उनका नाम भी रख दिया भूरा और भूरी दोस्ती इस प्रकार थी कि उन बच्चों को पूरे चिड़ियाघर में केवल भूरा-भूरी को ही देखना होता था और भूरा-भूरी को भी उन बच्चों का इंतजार होता था। उनके आते ही वह कल्लोल करने लगते और अपनी उछल- कूद से बच्चों का मनोरंजन करते शावकों की मांँ भी हिल मिल गई थी। रक्षा और उसके बच्चे उनके लिए कुछ हल्का फुल्का खाने के लिए भी ले जाते जिससे वह आनंदित होते थे,और प्रतीक्षा करते दिखाई देते थे। बच्चों के विद्यालय बन्द होने के कारण रक्षा उन्हें लेकर दिन में एक बार आ ही जाती थी।उसका टहलना भी हो जाता और मनोरंजन भी। दोनों परिवार का मिलन पूरे चिड़िया घर के कर्मचारियों में चर्चा का विषय बन गया था। सभी को उनके क्रियाकलाप में आनंद आने लगा था ।धीरे धीरे बच्चों की छुट्टियांँ खत्म हो गईं और उनका नित्य प्रतिदिन आना बंद हो गया फिर वह साप्ताहिक अवकाश के दिन ही आ पाते थे। देखो भूरा और भूरी भी उनके अवकाश की राह देखते थे।
दिन बीतते गए वह बच्चे बड़े हो गए और एक दिन ऐसा भी आया के उन बारहसिंगों को किसी दूसरे चिड़ियाघर में शिफ्ट करने की आवश्यकता आ पड़ी।भूरा-भूरी तो किसी गाड़ी में चढ़ने को तैयार ही नहीं थे,हारकर उनको बेहोश करके ही ले जाया जा सका।
सुषमा श्रीवास्तव, रूद्रपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड।

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