बालक ही शिक्षा का वास्तविक केंद्रबिन्दु

सम्बाभल।बालक किसी भी राष्ट्र का भविष्य ही नहीं, उसका वर्तमान भी है। जिस समाज में बच्चों के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता दी जाती है, वही समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी बच्चों से अपार स्नेह रखते थे, इसलिए उनके जन्मदिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि शिक्षा का वास्तविक केंद्र बालक ही है।
बच्चे जन्म से ही जिज्ञासु होते हैं। वे अपने आसपास की हर वस्तु, हर व्यक्ति और हर अनुभव से कुछ नया सीखने की कोशिश करते हैं। यही स्वाभाविक जिज्ञासा उनकी शिक्षा की नींव है। अतः शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो उनकी इस जिज्ञासा को दबाए नहीं, बल्कि उसे दिशा दे।
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) भी इस विचार को बल देती है कि शिक्षा बालक-केंद्रित, अनुभव-आधारित और सृजनात्मक होनी चाहिए। जब बच्चे को सीखने की स्वतंत्रता, प्रश्न पूछने का अवसर और अपनी प्रतिभा निखारने का वातावरण मिलता है, तभी शिक्षा सार्थक होती है।
बाल दिवस का संदेश यही है कि हर बच्चा अनमोल है, उसकी मुस्कान में देश की उन्नति छिपी है। इसलिए हमारी शिक्षण प्रक्रिया, नीतियाँ और दृष्टिकोण का केंद्र सदैव बालक ही रहना चाहिए।
शिक्षा का लक्ष्य अंकों से नहीं, व्यक्तित्व से तय होना चाहिए। जब बालक खुश, जिज्ञासु और आत्मविश्वासी होगा, तभी सच्चे अर्थों में शिक्षा सफल होगी।
नेहा शिशोदिया



