साहित्य

बात मेरी -तेरी

वीणा गुप्त

आज उनके  विवाह  की पचासवीं वर्षगांठ  थी। बच्चों  ने बड़े उत्साह से इसके लिए,जोर शोरों से आयोजन किया था। सभी नज़दीकी रिश्तेदारों को बुलाया था। उन दोनों ने तो बहुत मना किया, ” यह सब करना पैसे की फिजूल- खर्ची  है । लोग क्या कहेंगे, बुढ़ापे  में बूढ़े -बुढ़िया को यह क्या चोंचलेबाजी सूझी है।” पर बच्चों  ने उनकी एक न सुनी। वैसे बूढ़े- बुढ़िया  मन ही मन खुश थे कि बच्चों ने उनका इतना ध्यान रखा।पर ऊपर से इसे स्वीकारना न जाने क्यों उन्हें अजीब सा लग रहा था। वैसे उम्र का यह पड़ाव ऐसा ही होता है। बच्चे आपके मन की न करें, तो आपको अपनी औलाद नाशुक्रिया लगने लगती है, और करें तो फिजूल खर्ची नज़र आती है।
लेकिन यही एक ऐसा  अवसर था जब इन दोनों के विचार  मिल रहे थे। प्रायः इनके विचारों में  छत्तीस का आंकड़ा  रहता।  विवाह के पचास साल ऐसे ही कैसे नोंक झोंक बीत गए, पता ही नहीं चला।बच्चे अपनी ज़िंदगी में सैटल हो गए। अब ये दोनों अकेले  थे।लेकिन जीवन में  किसी किस्म की कोई कमी नहीं थी। सब इनका सम्मान करते। हर बात में इनसे सलाह- मशवरा करते।रिश्ते-नाते दार इनके आदर्श  दाम्पत्य  की मिसाल देते। लेकिन हकीकत इससे  एकदम अलग थी। पल भर दोनों साथ बैठते तो किच- किच शुरू हो जाती। बूढ़े को हर बात में  टोकने  की या सलाह देने की आदत थी। पहले बुढ़िया सुन लेती थी लेकिन अब उसकी सहन- शक्ति जबाब  दे चुकी थी। बहुत कोशिश करती कि बात आई -गई  हो जाए ,लेकिन  ऐसा नहीं  होता।बूढ़े को बुढिया से प्यार नहीं था, ऐसा नहीं था। ज़रूरत से ज्यादा  ही था। कहीं  इसे कुछ हो  न जाए, इसी चिंता में  रहता था। बुढ़िया  खाना बनाती, यह उसे सावधानी  बरतने का निर्देश  देता। बुढिया  बुरी तरह खीझ जाती। जब से ब्याह कर आई है, तब से ही उसने रसोई संभाली है।बूढ़ा तो अपने काम में व्यस्त रहता। आज बात -बात में  यह निर्देश उसे बहुत अखरता। बुढ़िया गैस पर कुकर चढ़ाती, यह उसे  फौरन सिम पर कर देता। इतना नमक, इतनी चीनी, इतना पानी, हर बात में  आदेश सुन सुन कर उसका माथा गरम हो जाता। घर में रोज महाभारत का छोटा मोटा एपीसोड हो जाता। बूढ़ा कहता ” तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ और तुम—-।” बुढ़िया कड़वा सच बोलती,” मेरा नहीं, अपना ध्यान  रखते हो। पता है  न कि मुझे कुछ हो गया तो कोई दो रोटी को भी पूछने वाला ——-। ”
बूढा़ बुरी तरह आहत हो जाता। बच्चों  को फोन घुमाए जाते।वाद -विवाद यहाँ से वहाँ होता। रोज रोज इनकी झिक- झिक सुनकर परेशान हुई ,विवाहित छोटी बिटिया ने  तो नेक सलाह ही दे डाली, “आपका साथ -साथ  रहना अब बड़ा मुश्किल  है । आप डाईवोर्स क्यों नहीं  ले लेते? आप दोनों  को अपना स्पेस मिल जाएगा और हम भी आपकी ओर से निश्चिंत हो जाएंगे। ”
वैसे कई बार बुढ़िया सीरियसली  सोचती “काश, ऐसा हो पाता। ”
लेकिन बाद में अपनी इस बेकार सोच पर हँसती। हाँ, बूढ़ा बेटी की जम कर क्लास लेता। ” माँ को बढ़िया सीख दे रही है बिटिया ” वह सुनाता। बात आई गई हो जाती। कहते हैं बुढ़ापे में  पति -पत्नी एक दूसरे का सहारा होते हैं। बिल्कुल सही  बात है।
ये दोनों में चाहे रोज छत्तीस का आंकड़ा हो ,पर तरेसठ होते भी इन्हें देर न लगती।
किंतु अति हर बात  की बुरी होती है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ। एक बार बुढि़या की पड़ोसन दोस्त  उससे मिलने आई। वह भी यहाँ अकेले  रहती हैं। उनके दोनों बच्चे विदेश में सैटल हैं। वैसे बूढ़ा नहीं चाहता कि कोई  उसके  घर आए ,उसकी पत्नी से  बात करे। लेकिन उस दिन ऐसा नहीं  हुआ। खूब अच्छे  से बात चीत हुई। खूब आवभगत भी हुई। सब खुश थे। जाते समय पड़ोसन ने बूढे़ को  अपनेपन में  आकर एक सुझाव दिया ,”भाई साहब, जरा घर को भी ठीक ठाक कर लो, भगवान  ने सब कुछ दिया है।अब ऐश करो ” बस फिर क्या था, बूढ़ा भड़क गया ,”घर तो ऐसे ही रहेगा। यह घर है, कोई होटल नहीं। आपको अच्छा लगे, तो आएं, नहीं  तो आपकी मर्जी।” वो दिन और आज का दिन, बुढ़िया की दोस्ती का चैप्टर , करीब -करीब बंद हो गया।
बूढ़ा बाहर का और बुढ़िया
घर का सारा काम सँभालाती हैं। इस मामले में दोनों की कैमिस्ट्री  बहुत ताल -मेल खाती है। घर का हर सामान उसे बिना कहे, बिना बताए मिल जाता है। कभी ऐसा नहीं  हुआ कि बुढ़िया को कुछ चाहिए और उसे वह न मिले। मुँह सेबात निकलते ही सब हाज़िर हो जाता है। हाँ,इस बात पर ज़रूर नोंक झोंक होती है कि बूढ़ा जरूरत से  ज्यादा  सामान लाता है। उसे सँभालना, खपाना बुढ़िया के लिए एक समस्या हो जाती है। रोज कलपती है,” खाने वाले दो जने और सामान पूरे कुनबे का उठा—” बूढ़े को  इस बारे में कुछ कहो तो उसे  बूढ़ी के मैनेजमेंट में  कमियाँ  नजर आती हैं।  बूढ़े को बाहर घूमना,खरीदारी बेहद पसंद हैं  बुढ़िया घर घुसरी है।बूढ़ी को पढ़ना, टी़ वी देखना,लिखना और सोना पसंद है, बूढा़ इस पर भुन भुनाता है। बूढ़ी  का हर शौक उसे नापसंद है।
वैसे दोनों  बहुत सोशल हैं। हर किसी की मदद को तैयार रहते हैं। बूढा़ आलराउंडर है। सभी विषयों की अच्छी जानकारी  रखता है।  आस पडो़स के लोग उसे सलाह लेने आते हैं। उन दोनों  का सम्मान करते  हैं।
अक्सर उनके बच्चे ,उनके  पास
मिलने आ जाते  हैं। अपनी सभी बातें भी शेयर करते हैं। पर पिता और बच्चे कभी एकमत नहीं  होते। अक्सर संवाद विवाद में  बदल जाता है। बच्चे  और पिता किसी को खुद पर कंट्रोल  नहीं  है। बूढ़ी का मन सदा आशंकित रहता है। कहीं बच्चे  गुस्से  में  कुछ उलटा सीधा बोल गए ,तो बूढ़ा सेंटी हो जाएगा  और बच्चों  के  इस व्यवहार  के लिए बूढ़ी को ही सुनाएगा। बूढ़ी के पास चुप रहकर सुनने के अलावा  कोई  चारा नहीं  है। उसे  पता है अगर वह बोली तो  बच्चे  बीच में  आ सकते  हैं। उन्हें  पिता द्वारा  किया जाने  वाला माँ का अपमान
अब सहन नहीं होता।
वैसे बूढ़ा एक बहुत अच्छा  पिता है। बच्चों की शिक्षा – दीक्षा के लिए  कभी कोई   कमी नहीं  छोड़ी। बच्चों की सुखी गृहस्थी  के पीछे  उन दोनों  का समर्पण और त्याग हैं। बच्चे  भी यह जानते हैं। पर बूढ़ा चाहता  है  कि आज भी सब उसे  पूछ बता कर हो।कभी -कभी बच्चे अपने  निर्णय  खुद, बिना बताए बिना पूछे लेते हैं तो बूढ़ा जिंदगी  बेकार हो गई, इनके लिए फलाना किया ,ढिमका  किया, वाला राग अलापता है। बूढ़ी इस मामले  में  कुछ समझदार है। पति को समझाती है, “जो हमने अपने  बच्चों  के लिए  किया, वो ये लोग अपने  बच्चों  के लिए  कर लेंगे।इसी प्रकार  पितृऋण चुकता है। श्रवण कुमार की तरह माता -पिता को ढोना संतान का फर्ज नहीं  है और न ही  माता पिता ये  चाहते हैं। आखिर हमारे पूर्वजों ने वानप्रस्थ और संन्यास  की बात यों ही तो नहीं  की थी। टोका -टोकी छोड़कर खुद भी मजे में  रहो और बच्चों  को भी  उनके  अंदाज़ से जीने दो। ” बूढ़ी का यह अति व्यावहारिक फ़लसफा़ बूढे को बिल्कुल हज़म नहीं  होता। उसे  उसके ज्ञान पर ताने देता और भला बुरा कहता हैं। बूढ़े की भाषा इतनी कर्कश और मारक है कि बूढ़ी सह नहीं  पाती। चुप चाप रोती है। यह रोज का किस्सा है।  किसी का जन्म दिन हो,या  विवाह  की वर्षगांठ, या कोई  तीज त्यौहार  सभी घर में ठीक ठाक से मनाए  जाते हैं पर उनमें भी लड़ाई  झगड़े  का तड़का लगे बिना नहीं  रहता। बुढ़िया को बूढ़े से मिला हर प्रेमोपहार,  अपने साथ एक कड़वी-मीठी याद समेटे है।
बूढ़ा  कई बार लोगों  के सामने  बूढ़ी की इतनी तारीफ़ करता है कि बूढ़ी को परेशानी होने लगती है और कई बार इतनी  बुराई करता है  कि कई बार तो बूढ़ी को  भी लगने लगता है  कि वह सचमुच कितनी बुरी है। वैसे  ऐसी स्थिति में  बूढ़ी समभाव धार लेती है। दोनों  कानों का सदुपयोग कर,एक से सुनकर दूसरे से बाहर निकाल कर सुख दुःख  से  परे हो जाती है। बूढी और बूढ़ा अपनी सेहत को लेकर  बहुत सावधान है। बूढ़ी को जरा सा भी कुछ हो जाए  तो  परेशान  हो जाता है। यही हाल बूढ़ी का है। फल, पौष्टिक आहार, और   कैलशियम और आयरन जैसी दवाइयाँ  नियमित रूप से लिया जाए, इस विषय  में  पूर्ण सतर्क हैं। अच्छे  से अच्छा खाते पहनते हैं पर झगड़ने से बाज नहीं  आते। पिछले  वर्ष बूढी़ को एक छोटी मोटी सर्जरी से  गुजरना पड़ा। बच्चों  को आने की फुरसत नहीं  थी। बूढ़े ने सब काम अकेले  बखूबी  संभाल लिया। वस्तुतः बूढ़े बुढ़िया  की यह कहानीएक घर की नहीं है। सार्वभौमिक है। हरि कथा की भाँति अनंत -अवर्णनीय है।
“मम्मी- पापा आप दोनों  फोटो  के लिए स्टेज पर आ जाओ।” छोटी बेटी उन्हें  बुला रही  है। दोनों  शर्माते हुए जाते हैं और थोड़ी ही देर बाद बूढ़ी एक ग़जल पढ़ती है

उम्र ढलने पर हमें,
कुछ यूँ इशारा हो गया।।
हम सफ़र इस ज़िंदगी का,
और प्यारा हो गया।।

फोटो  पर फोटो  खिंच रही है ,और हम सफर यानि कि बूढा़,मस्ती में बूढ़ी को इंगित करते हुए  नाच- गा रहा है ।

ओ मेरी जोहरा जवीं,
तू अभी तक है हसीं—

वीणा गुप्त
नई दिल्ली

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