
गुरु-जन को करूँ मैं दंडवत,
हाथ जोड़ कोटी – कोटी प्रणाम।
गुरु आप हो सत्य और शाश्वत,
गुरु का ज्ञान है भारत की विरासत।
सदियों से ग्रंथों को गुरु आप ने पढ़ाया,
अज्ञानी को ज्ञानी आपने ही बनाया।
ईस्वी सदी की जब शुरुवात हुई,
दुनिया पढ़ने लिखने सीखने लगी।
विक्रमादित्य, पाणिनि, और चाणक्य,
तब गढ़ चुके थे अर्थशास्त्र और व्याकरण।
थे वराहमिहिर, आर्यभट्ट जैसे विद्वान,
जो अंतरिक्ष का खूब रखते थे ज्ञान।
विक्रमशिला, नालन्दा और तक्षशिला,
सिर्फ भारत में विश्वविद्यालय मिला।
धर्मपाल,धर्मकीर्ति,वसुबंधु,
शान्तारक्षिता, नागार्जुन, सुविष्णु,
आर्यदेव, पद्मसंभव और थे असंग
यहीं देश विदेश के पढ़ते थे एक संग।
गुरु आप हो सत्य और शाश्वत,
गुरु का ज्ञान है भारत की विरासत।
कविता ए झा
नवी मुंबई
महाराष्ट्र



