
“खाना तो अच्छा था पर पूरियाॅं ना थी वरना पूरा खाना हो जाता।” अम्मा ने आते ही शिकायती लहजे में कहा… अब आधा पेट भर भी गया और खाना खाये सा भी ना लगा।
किसी दावत ,बर्थडे पार्टी आदि में जाओ तो कितनी ही चीज़े हों, खाने पीने की…पूरी सब्जी ना हो तो यही लगता है कि चाय पर ही बुलाया था। सब्जी पूरी रसगुल्ला और केक का टुकड़ा भी हो तो भी लगता है भरपेट खा आए। अगर चर्चा ब्याह की हो और लड्डू और पुरियों का ज़िक्र ना हो तो चर्चा अधूरी ही नहीं, बेमानी हो जाती है ।
पूरी या पूड़ी सिर्फ एक व्यंजन नहीं ,भारतीय भोजन संस्कृति को समाकर चलने वाली परंपरा है जो थाली को पूर्णता देती है।
पूरी या पूड़ी का नाम लेते ही एक गोल-गोल फूली- फूली खस्ता- खस्ता रोटी आंखों के सामने घूम जाती है जिसके साथ चटपटे अचार -चटनी,आलू मटर या हलवे की सहज ही कल्पना की जा सकती है ।पूरी का इतिहास बहुत पुराना है …पौराणिक मान्यता के अनुसार द्रौपदी ने कुंती की चुनौती का सामना करने के लिए कम से कम खाद्य सामग्री से पुड़िया बनाई थी और चुनौती जीत ली ।तब से पूड़ी का चलन पूरी तरह पेट भरने वाले खाद्य के रूप में होने लगा।
पूड़ी संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग हर हिस्से में अलग-अलग अंदाज़ में खाई जाती है। प्राचीनतम भजनों में भी जब मां दुर्गा को भोग लगाने की बारी आती है तो हलवा -पूरी का ही ज़िक्र होता है । पूरी की उत्पत्ति संस्कृत के पूरिया शब्द से हुई है जिसे शष्कुली भी कहा जाता है । पूड़ी पक्के खाने में आती है जबकि दाल भात कच्चे खाने में …उत्तरी भारत में अधिकांश घरों में दिन के भोजन में कच्चा खाना और रात के भोजन में पक्का खाना बनता है। लिहाजा पुरियाॅं तलकर नहीं बल्कि तवे पर तेल या घी के साथ सेंक कर बनाई जाती हैं जो भोजन का अहम् हिस्सा होती हैं ।अब आते हैं ब्याह की पूरी पर.. तो ब्याह में तो पूरी के जलवे देखते ही बनते हैं.. कम से कम चार-पांच तरह की पूरियाॅं ना परोसी तो ब्याह कैसा!!! सादी पूरी, मैदा पूरी ,पालक पूरी ,मटर पूरी, मिस्सी पूरी यानी कई तरह की पूरियां आज ब्याह /दावतों में थाली की शोभा बढ़ाती हैं ।भटूरा पंजाब ,लूसी असम, लुची बंगाल, पूरनपोली महाराष्ट्र ,मठरी/सुवाली राजस्थान, पानी पूरी ..अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फास्ट फूड ।इसके अलावा गोभी परांठा, मूली परांठा ,आलू परांठा ,पालक परांठा, पनीर परांठा ,मेथी परांठा , मिलेट परांठा ,मल्टीग्रेन परांठा यानी कितनी तरह की पूड़ी भारतीय विवाह या दैनिक भोजन को अपनी उपस्थिति से पूर्णता प्रदान करती हैं।बताती चलूं कि तवे पर कम तेल /घी में सेंके गए परांठे को तवे की पूरी कहा जाता है।
सीधी-सादी आटे की पूरी जहाॅं भी गई वहाॅं की रसोई की महक और शक्ल अपने में आत्मसात करते हुए आज हर थाली की रानी बन चुकी है। आम घरों में आज भी नमक अजवाइन वाले आटे की सीधी -सादी तवा पूरी से ही दिन के पहले भोजन यानी नाश्ते का आगाज़ होता है ।उत्तर प्रदेश में उड़द दाल की पीठी भरी हुई हाथ से ठेकी हुई पूड़ीकचोड़ी के बिना ब्याह की दावत संपन्न ही नहीं होती ।आमजन का पेट भरने वाली आटे की पूड़ी आज नई नई इनोवेटिव शक्लें लेती हुई हर जिव्हा को चटकारे दिलाने में लगी हुई है ।
ब्याह में जितनी मिठाई/ नमकीन /अचार/ चाटनी/ दाल मखनी/ मलाई कोफ्ते अपनी प्लेट में भर लें लेकिन जब तक गरमा गरम पूरियों के काउंटर तक पहुंच कर एक दो पूरी अपनी थाली में ना रखें, थाली अधूरी -अधूरी सी लगती है ।अगर कोई सब्जी चटनी ज्यादा ही पसंद आ गई तो एक पूड़ी और आ गई प्लेट में। विवाह के घरों में कई कई महिलाएं एक साथ बैठकर जब पूरियां बेलती हैं तो माहौल सच में शादीमय हो जाता है ।गांव की शादियों में तो आज भी पूरी बेलते हुए महिलाएं शादी के लोकगीत गाती हुई सुनाई देती हैं जो पाणिग्रहण संस्कार को एक पूर्णता देता- सा प्रतीत होता है। और हां, पानी पूरी तो आज हर छोटीबड़ी, सस्ती महंगी शादी की शहजा़दी बनी हुई है ।नन्ही नन्ही पूरियाॅं ,चीरा लगा पेट ,भीतर आलू का चटपटा मसाला.. उस पर खट्टा मीठा तीखा पानी .. हाथ में दौने थामे एक-एक पानी पूरी के लिए धैर्य से अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुए मेहमान.. चटकारों के स्वर… हंसी ठहाके ..खट्टा पानी /मीठा पानी /तीखा पानी के गूंजते स्वर… जो न खाए उसके मुंह में भी पानी आ जाए ।
तो अब ब्याह की पूरियाॅं खा लीं या अभी भी कतार में है?
@मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम ✍️ ✍️


