चांद सी बेटी पे सबकी है नज़र ।
सोचती कैसे कटेगा ये सफर ।।
लोमड़ी सी सोच जिसकी हो गई ।
घूर कर देखे है सहरी ये बशर ।।
मुस्कुराकर देखते उसको सभी ।
खूब सूरत होने का है ये असर ।।
छेड़खानी हो गई इक शाम जब ।
लोग जाने तब व्यवस्था है लचर ।।
खा गयी धोखा सरे बाज़ार वो ।
छप गई अखबार में सारी खबर ।।
आज भी ऐसी समस्या है बनी ।
पी रहे इस दंश का बच्चे जहर ।।
कवि सिद्धनाथ शर्मा * सिद्ध *




