आलेख

चिट्ठियों का अद्भुत संसार

संजय प्रधान

एक जमाना थी चिट्ठियों का जब चिट्ठी पोस्ट मैन के माध्यम से आती थी। पोस्ट कार्ड, इनलैंड पेपर, लिफाफों के माध्यम से साधारण पत्र साधारण डाक से और सरकारी महत्वपूर्ण और अन्य महत्वपूर्ण पत्र रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से। या फिर रिजिस्टर्ड ए डी के माध्यम से।

आज भले ही समय डिजिटल हो गया है। सारे पत्र मैसेज मोबाइल पर मैसेजिंग से या फिर वाह्टअप काल के माध्यम से।

पर उसमें क्या मजा जो चिट्ठी पत्री व लिखने पढ़ने में है। डिजिटल में नही। लिखने वाले की तन्मयता पढ़ने वाले की तन्मयता‌ । जितनी बार जब चाहे पढ़ लो। सुंदर सुंदर हस्तलेख । मोबाइल पर पत्र लिखा पत्र डालिट हो सकता है। मिस हो सकता है।
पर हस्तलिखित पत्र तो दस्तावेज होता है। जब चिट्ठी शोक की हो तो दुख, चिट्ठी खुशी हो तो दिल खुश, प्रेमि प्रेमिका की प्रेम को संजोए चिट्ठी। देखी है हमने फिल्मों में। महसूस करो । जब चाहे जितनी बार पढ़ लो एकांत में। पहले कबूतर करते थे ये काम, फिर चिट्ठियां और अब मोबाइल।
पर आज भी पोस्ट आफिस के बाहर या सार्वजनिक स्थानों पर लाल लेटर बाक्स इंतजार करते हैं चिट्ठियों का।
आशा है फिर दौर शुरू होगा चिट्ठी पत्री का और प्रेमी प्रेमिका अनुभव करेंगे एक दूसरे की उंगलियों के स्पर्श का चिट्ठी में लिखी गई सुंदर सुंदर पंक्तियों के माध्यम से।
संजय प्रधान
देहरादून।

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