साहित्य

चली हवा उलटी

कनक

चली हवा उलटी गिन के वाक़िआ वो भी
हुई सजा हमको फ़िर भी पुर खता वो भी।।

किसी नज़र को छिपा ख्यालों जानता हूंगा
निकल हरम से तू बाहर ये हादसा वो भी।।

दुआ मिली पर मरहम लगा चला वो भी
नहीं मिला है अभी हमको राब्ता वो भी।।

मिरे लिए करते हैं वो मगर दुआ वो भी
लगी मुझे यह आशा मिली वफ़ा वो भी।।

निभा नहीं उससे भी इक वादा करके
फ़िर ऐसा वक़्त भी आया बिछड़ गया वो भी।।

असल में मैं अपनी रात को भूला उल्फ़त
यहां पे हम भी थे घायल तो गमजदा वो भी।।

हमनशी भी खपा हैं अब नहीं मिला कोई
मिरि तरह अब पागल है रायता वो भी।।

कनक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!