
किनारा कर गए आज ,
रिश्ते, नाते ,दोस्त सारे
उनके एहसान चुकाना कहां ,
सबके लिए आसान था ।।
किस्तों में देते रहे असल
हम कतरा कतरा भरे,
मूल से भी ज्यादा तो,
उनका रिश्तों का व्याज था ।।
गैरों ने संभाला,
उसका जनाजा आखिर,
कमबख्त उसे उम्र भर
उसके रिश्तो पर नाज़ था ।।
ताउम्र करता रहा मदद
खुला रखा अपना आशियां
सबके लिए जिसने रखी भावना
उसके लिए न बची जमीन न आसमां ।।
सबकी जुबान पर उसका चर्चा
सबकी जुबान पर उसका नाम था
हमदर्द, मददगार और किसी के लिए
वो सिर्फ एक किरदार था । ।
आशी. प्रतिभा दुबे ( स्वतंत्र लेखिका)
मध्य प्रदेश, ग्वालियर
भारत




