साहित्य

एको बतिया ना मानी

विजय चन्द्र त्रिपाठी

ध इले ई रहि जाई सोनवां आ चानी
आई जयराज एको बतिया ना मानी

सूइया दव ईया कुछु देर ले बचाई
माई बाप ल ईका पतनी देह सुहुराई
हीत-नात बगले के लोग सब आई
क ईके दुआर सभे घरे चलि जाई

रहि जाई बस एगो खिसवा कहानी
ध ईले ई रहि जाई सोनवां आ चानी

जल्दी जल्दीदानपुनीकरींनीक कमवां
जाये के पहिलहीं सुधारिलीं करमवां
केहू के देखाईं जनि झूठ मूठ शनवां
सूरुजो चनरमा पर लागे गरहनवां

नीमने करमवां के दुनियाँ बखानी
ध ईले इ रहि जाइ सोनवां आ चानी।
विजय चन्द्र त्रिपाठी

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