ध इले ई रहि जाई सोनवां आ चानी
आई जयराज एको बतिया ना मानी
सूइया दव ईया कुछु देर ले बचाई
माई बाप ल ईका पतनी देह सुहुराई
हीत-नात बगले के लोग सब आई
क ईके दुआर सभे घरे चलि जाई
रहि जाई बस एगो खिसवा कहानी
ध ईले ई रहि जाई सोनवां आ चानी
जल्दी जल्दीदानपुनीकरींनीक कमवां
जाये के पहिलहीं सुधारिलीं करमवां
केहू के देखाईं जनि झूठ मूठ शनवां
सूरुजो चनरमा पर लागे गरहनवां
नीमने करमवां के दुनियाँ बखानी
ध ईले इ रहि जाइ सोनवां आ चानी।
विजय चन्द्र त्रिपाठी



