आलेख

‘फायकू’ आमजन का अपना साहित्य है

अंतर्राष्ट्रीय फायकू दिवस पर विशेष

अमन कुमार ‘त्यागी’

फायकू का प्रयोग ऐतिहासिक रूप से, उपनाम के लिए अथवा लोगों को समूहों में क्रमबद्ध करने के एक तरीके के रूप में विकसित हुआ है। व्यवसाय, मूल स्थान, कबीले संबद्धता, संरक्षण, माता-पिता, गोद लेने और यहां तक कि शारीरिक विशेषताओं के आधार पर भी फायकू लोगों की पहचान की जा सकती है। शब्दकोश में मौजूद कई आधुनिक उपनामों का पता ब्रिटेन और आयरलैंड से लगाया जा सकता है। किंतु यहां हम ‘फायकू’ नाम से साहित्य की एक नई विधा को विकसित कर रहे हैं। यह ऐसी विधा है जो 2012 में नजीबाबाद से फेसबुक के माध्यम से अवतरित हुई और किसी दावानल सी फैल गयी। मजेदार किन्तु साहित्य की सभी परिभाषाओं से परिपूर्ण फायकू को हाईकू की नकल मानने की भूल न करें। हम बात कर रहे हैं एक ऐसी खूबसूरत विधा की, जो जमीन से जुड़ी हुई है। यहां कल्पना के घोड़े उड़ते हैं मगर उतरकर जमीन पर ही आ जाते हैं। क्योंकि FAYKO में FAY का अर्थ है तलछट (जमीन से मिला हुआ)।
प्रसिद्ध है कि आयरिश अपने नाम के बाद थ्।ल्ज्ञव् शब्द का प्रयोग करते हैं। आयरिश में FAYKO का मतलब ‘उड़ाने के लिए, हवा’ To blow, Wind है। उतना ही उड़ाना जिससे जमीन पर वापिस आने में कोई कष्ट न हो। यहीं से प्रेरित होकर फायकू को ‘समर्पण’ का प्रतीक मानते हुए रचना की गई है। इसी के साथ इसमें मात्र तीन पंक्तियों का प्रावधान रखा गया है। यह तीन पंक्ति हाइकू से ली गयी नहीं माना जाए बल्कि इसको तीन लोकों के रूप में लिया जाना चाहिए।
तीन लोकों को इस प्रकार जाना जा सकता है-
1. पाताल लोक जिसे अधोलोक के नाम से भी जानते हैं। 2. भूलोक जिसे मध्यलोक अथवा पृथ्वी लोक भी कहा गया है। 3. स्वर्गलोक जिसे उच्चलोक भी कहा जाता है। जहां देवताओं के राजा इंद्र, सूर्य देवता, पवनदेव, चन्द्र देवता, अग्नि देव, जल के देवता वरुण, देवताओं के गुरु बृहस्पति, अप्सरायें आदि निवास करती हैं।
इन तीनों लोकों को भी 14 लोकों में बांटा गया है। इन 14 लोकों को भवन के नाम से भी पुकारा जाता है। जिनमें – 1. सत्लोक 2. तपोलोक 3. जनलोक 4. महलोक 5. ध्रुवलोक 6. सिद्धलोक 7. पृथ्वीलोक 8. अतललोक 9. वितललोक 10. सुतललोक 11. तलातललोक 12. महातललोक 13. रसातललोक और 14. पाताललोक सम्मिलित हैं।
चूंकि हम मानव हैं और पृथ्वीवासी हैं इसलिए हमें पृथ्वी ही सबसे भली लगती है। पृथ्वी में भी वह स्थान जहां हम रहते हैं तभी तो तीन लोक और सभी भवन की तुलना में ध्रुवदास भूलोक (अपने वृन्दावन) को महान बताते हुए कहते हैं-
तीन लोक चैदह भुवन, प्रेम कहूं ध्रुव नाहिं।
जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन माहिं।।
ध्रुवदास कहते हैं कि तीन लोक और चैदह भुवनों में सहज प्रेम के दर्शन कहीं नहीं होते। यह तो एकमात्र श्री वृन्दावन में कञ्चन में जड़ी मणि की भांति जगमगा रहा है।
इसी भूलोक को और अधिक समझने का प्रयास करते हैं- ‘त्रिलोक’ को हिन्दू मान्यता के अनुसार ‘तीन दुनिया’ के रूप में समझा जा सकता है। यह तीन लोक देवलोक, भूलोक तथा पितृलोक लोक माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि – भूलोक पुत्र द्वारा जीता जाता है, पितृलोक कर्म द्वारा जीता जाता है और देवलोक विद्या द्वारा जीता जाता है। (बृहदारण्यक उपनिषद् अध्याय 1 ब्राह्मण 5 मंत्र 16)
किंतु ये तीनों लोकों को जीतने का मतलब छीनना नहीं बल्कि समर्पित भाव से कर्म करना है। अब फायकू की इन तीनों पंक्तियों को भी तीन लोक के रूप में समझने का प्रयास करें। इनमें प्रथम पंक्ति में उद्देश्य होता है। अर्थात वह बात जो कही जा रही है, जबकि दूसरी पंक्ति में स्थिति वर्तमान रहते हुए अपनी इच्छा, विश्वास, योजना आदि रचनाकार का कृत्य स्पष्ट करती है। और तीसरी पंक्ति में रचनाकार की समस्त कर्मशीलता, इच्छाएं, विश्वास, योजनाएं आदि अपने इष्ट के प्रति समर्पित हो जाती हैं। सवाल यह था कि समर्पण को कैसे प्रदर्शित किया जाए? तमाम चिंतन और मंथन के बाद समर्पणभाव को ध्यान में रखते हुए अंतिम दो शब्द ‘तुम्हारे लिए’ निश्चित किए गए। ये दो शब्द ‘तुम्हारे लिए’ इस नई विधा को न सिर्फ नवीनता प्रदान करते हैं बल्कि उद्देश्य की पूर्ति भी करते हैं। यही दो शब्द इस रचना को प्रारंभ से अंत तक ऐसे बांध लेते हैं कि अनजान और अकवि भी सरलता के साथ फायकू की रचना कर सकता है।
‘फायकू’ प्रथम दृष्टि में भले ही ‘हायकू’ जैसा लगता हो मगर इसकी व्याकरण ‘हाईकू’ से एकदम भिन्न है। हायकू में तीन पंक्तियां होती हैं जिनमें प्रथम में पांच अक्षर दूसरी में सात अक्षर और तीसरी में पुनः पांच अक्षर होते हैं। फायकू का सम्बंध संगीत से भी है। यह पूर्णतः नवोदित व भारतीय है।
फायकू की व्याकरण
इसमें कुल तीन पंक्तियां हैं। प्रथम पंिक्त में चार शब्द अनिवार्य हैं जबकि दूसरी पंक्ति में तीन और अन्तिम पंक्ति में मात्र दो। अन्तिम पंक्ति के लिये दो शब्द ‘‘तुम्हारे लिए।’’ होना अनिवार्य है।
प्रथम बार प्रथम रचनाकार अमन कुमार त्यागी के मुंह से निकला प्रथम फायकू देखें-
गुनाहों की हर तरक़ीब
मुझे आजमाने दो
तुम्हारे लिए।
कुछ और फायकू देखें-
1
गुनाहों के जंगल में
किससे मांगू न्याय
तुम्हारे लिए।
2
नहीं कवि मैं लिखूं
हर फायकू बस
तुम्हारे लिए।
3
है मेरा हर फायकू
बस तुम्हें समर्पित
तुम्हारे लिए।
4
लिखूं पढ़ूं देखूं कि
निहारूं तुम्हीं को
तुम्हारे लिए।
5
सोऊं जागूं आंख खोलूं
कि बंद करूं
तुम्हारे लिए।
6
प्रेम नफरत अपना पराया
सब छोड़ दिया
तुम्हारे लिए।
7
हार जीत जश्न खुशी
सब ठहर गयीं
तुम्हारे लिए।

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