
दिल्ली का दिल दहला गया ,
सियासत में कौन शोर मचा गया
अपने वतन को नुकसान पहुंचाते
नापाक सोच वाले कहां से आ गया ।।
प्रार्थना शांति जिसे चुभ रही थी,
घर का वेरी शायद लंका ढाह गया
शांति कैसे हो सकती हैं देश में,
शायद यही सोच से बंब लगा गया ।।
क्या गजब की फितरत पाई
खाया नमक जिसका उसका
उस जमी को खून से नेहला गया
ये घर में ही कौन आतंक फैला गया ।।
देश की मिट्टी कलंकित कर रहे
क्या क्या हुनर ,अब ये सीख रहे
सारी सुविधाएं देश से ही लेकर
घृणा के बीज,देश में ही क्यूं वो रहे।।
क्या पाया मासूमों की वली देकर
किसके लिए ये,गलत मार्ग चुन रहे
सर जमी वतन क्या इनका नहीं ये
क्यूँ बाहरी सोच पाकर आतंकी बन रहे
©आशी प्रतिभा
मध्य प्रदेश, ग्वालियर




