
जीवन की पगडंडी पर
मैं परेशान था
हैरान था
उलझन में था
चिंतित था
जीवन पगडंडी पर
चलना भारी हो रहा था
ऐसे में
तुम्हारा पगडंडी पर मिलना
मधुर बाते कर
आगे बढ़ने में
साथ देना
हाथ बटाते पगडंडी पर चलना
घर से भटके पथिक को
घर तक पहुंचा ने में
आपका जो साथ मिला
वह वंदनीय है
सच में तुम
इस घर की
गृह लक्ष्मी हो
विनोद कुमार सीताराम दुबे शिक्षक भांडुप मुंबई महाराष्ट्र
संस्थापक इन्द्रजीत पुस्तकालय सीताराम ग्रामीण साहित्य परिषद सामवन्ती ग्राम महिला विकास मंडल जुडपुर मड़ियाहूं जौनपुर उत्तर प्रदेश




