
नफीस बनकर वो दुबारा न मिलता,
भटकते हमीं यूँ किनारा न मिलता।
पकड़ कर मुझे राह नेकी दिखाई ,
हर तरफ मिलावट इशारा न मिलता।
सजाया खुमार दिल से वंदगी कर,
मिरा दिल दुखाया नकारा न मिलता।
जिधर देखिए आज धुंध सा घना है,
दिए बिन यहाँ अब उजारा न मिलता।
वफा के किस्से सुनाते रहे हम,
किसी से हमें वो गवारा न मिलता।
लिखा भाग्य में था अकेले चलें हम ,
कलम से हमें ये सहारा न मिलता।
सुमन चल पड़ी है गजल छंद लिखने ,
मिला मंच है मीत प्यारा न मिलता।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




