साहित्य

गजल

डाॅ सुमन मेहरोत्रा

नफीस बनकर वो दुबारा न मिलता,
भटकते हमीं यूँ किनारा न मिलता।

पकड़ कर मुझे राह नेकी दिखाई ,
हर तरफ मिलावट इशारा न मिलता।

सजाया खुमार दिल से वंदगी कर,
मिरा दिल दुखाया नकारा न मिलता।

जिधर देखिए आज धुंध सा घना है,
दिए बिन यहाँ अब उजारा न मिलता।

वफा के किस्से सुनाते रहे हम,
किसी से हमें वो गवारा न मिलता।

लिखा भाग्य में था अकेले चलें हम ,
कलम से हमें ये सहारा न मिलता।

सुमन चल पड़ी है गजल छंद लिखने ,
मिला मंच है मीत प्यारा न मिलता।

डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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