विवाहोपरांत आरंभ हो, जीवन का नव गीत,
ऋषि-मुनियों ने कहा इसे, सृष्टि हेतु प्रवीत।
सोलह संस्कारों में यह, पहला पावन मान,
गर्भाधान से प्रकट होती, सृष्टि की संतान॥
गर्भाधान का अर्थ यही — पावन भाव संचार,
जहाँ तन मन निर्मल रहें, हो शुभ विचाराचार।
संतान उत्पत्ति हो सके, जैसे हो वरदान,
धरम, ज्ञान, सद्भाव से, सजे कुल सम्मान॥
वेदों में कहा गया यह, यज्ञ समान अनुष्ठान,
पति-पत्नी हों एकचित्त, करें देव आह्वान।
शुभ मुहूर्त में करें प्रणय, पवित्र हृदय अभिमान,
जपें मंत्र से प्रार्थना — “हो सद्गुणी संतान॥”
पहले शुद्ध करें तन-मन, करें व्रत-नियम निदान,
सात्विकता का हो वरण, शांत हो हर प्राण।
अन्न, जल, वाणी, व्रत, सभी बनें मर्यादित,
देवत्व का आह्वान तभी, होगा मन एकचित्त॥
वेदों ने कहा स्पष्ट यह, बीज हो जब निर्मल,
तब ही उपजे दिव्यफल, गुणी सुत शुभबल।
जैसे खेत में पावन बीज, फल देता सुनसान,
वैसे ही शुद्ध मनोभाव से, हो जीवन महान॥
गर्भ ही पहला विद्यालय, जहाँ सिखे मानव धर्म,
माँ के मन का हर विचार, बनता उसका कर्म।
माता के गीत, हर्ष, तप, सब देते परिणाम,
जैसी होगी मातृचेतना, वैसा होगा नाम॥
विज्ञान कहे विचारों से, बनता शिशु का मस्तिष्क,
माँ के भाव बदलते ही, बदलें उसके दृष्टि-इष्ट।
तन-मन की तरंगों से, चलता संस्कार-प्रवाह,
इसलिए माँ की शांति ही, जीवन का पथप्रवाह॥
गर्भाधान संस्कार करे, कुलधर्म का विस्तार,
जिससे संतति हो सज्जन, न हो पापाचार।
यही रखे कुल की शुचिता, यहीं से प्रेम उपजता,
संस्कार यही मनुष्यता का, प्रथम दीपक सजता॥
जब संकल्प करे दंपति, देवों को हो याद,
तभी जुड़ता आत्मा-आत्मा, पूर्ण करे संवाद।
वह क्षण बनता पावनतम, जब प्रेम बने प्रसाद,
गर्भ बन जाए देवालय, और जीवन हो आबाद॥
गर्भाधान न केवल जनन, वरन् सृजन महान,
जहाँ प्रेम से जन्मे जीवन, बने धरम निदान।
यही बताए मानवता को, जीवन का प्रतिपाद,
गर्भाधान संस्कार सदा, रखे सृष्टि में संवाद॥
✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”



