
वही गुज़रा हुआ बचपन लगे जागीर सोने की।
कभी लड़ना हॅंसी क्रंदन बनी तस्वीर सोने की।।
हृदय से दूर हरियाली बगीचे है लगी ऐसी।
लगा है प्यार पर पहरा मिली जंजीर सोने की।।
नजर से देख फूलों को सभी रंगीन सुंदर हैं।
खिले मन का सुघर उपवन बने तकदीर सोने की।।
कठिन है साॅंस लेना भी लड़े कैसे ॲंधेरों से।
मिटाकर रंजिशें मन की लगे शमशीर सोने की।।
करे ममता यही विनती हमें सद्बुद्धि प्रभु देना।
सुवासित हर दिशाओं में बहे ताबीर सोने की।।
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ममता झा मेधा
डालटेनगंज



