निर्मल-शीतल- पावन, कल – कल बहता नीर तुम्हारा ,
हे माँ गंगे ! पाप सभी के हरता नीर तुम्हारा ।
पर्वत, हिम- वसनों से सजकर सूरज के गुण गाते,
सूर्यकिरण की ऊष्ण छुअन से हिम जब घुल-घुल जाते,
ऊँचे हिम पर्वत से तब झर – झरता नीर तुम्हारा ।
हे माँ गंगे ! पाप सभी के हरता नीर तुम्हारा ।
राजवीर सिंह राज़
रामपुर (उ०प्र०)
8077014296




