
जाना तो था ,तुम्हें एकदिन
जाते -जाते कुछ तो कह जाते ?
पर……
इस तरह चुपचाप बेआवाज
चली गई इस जीवन से क्यों?
क्या…..,
मुझसे कोई खता हो गई थी,
जो -इस तरह चली गई जीवन से,
और ,तड़पने के लिए तन्हाई दे गई |
कम से कम आवाज तो दिया होता
या जाते -जाते कुछ कह तो जाती !
शायद दिया भी होगा,
पर हम ही नहीं सुन पाये होंगे,
आज भी ढूंढ़ते है तुम्हारी उस आवाज को,
जो, जाते जाते कुछ कह कर गई थी
कुछ कह कर गई थी उस दिन ||
*शशि कांत श्रीवास्तव*
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब



