
जब सुख-दुख हो एक ही जैसा,
गीत तो एक निकलेगा ही।
हम किसान-मजदूर के बच्चे,
क्रांति की गीत तो गायेंगे ही।
इधर भी अश्रु उधर भी अश्रु,
मेल-जोल तो बढ़ेगा ही।
अश्रुधार आधार बनाकर,
इंकलाब तो गूंजेगा ही।
हम भी पीड़ित वो भी पीड़ित,
मिलकर उपाय सोचेंगे ही।
क्रांतिकारी विचार अपनाकर,
शोषण की जंजीर तोड़ेंगे ही।
हमने दुख बहुत है झेला,
अब भावी पीढ़ी पर सोचेंगे ही।
क्रान्ति की चिंगारी लेकर,
हम घर-घर जायेंगे ही।
बहुत सहा है असमानता,
अब तो उससे लड़ेंगे ही।
भगत सिंह की विचार अपनाने को,
हर नौजवान से कहेंगे ही।
अमरेन्द्र
पटना,बिहार।




