
जीवन है गहरा समुद्र,
तूफ़ान दिखाता रुद्र रूप
इस पार या उस पार
दाता करना तुम उद्धार।
गैरों से कोई शिकवा नहीं?
अपना कहने को रहा नहीं !
कठिन राह पर मैं संभलती
आँचल में अबोध जो पलती।
जीना था कर्तव्य निमित्त,
प्रारब्ध करता रहा व्यथित;
सहम-सहम रखूँ कदम
बन न जाए कोई नए जख्म?
जिन्दगी नहीं आसान,
होती न कम कभी थकान
मन रहता हरदम आतुर,
बिना रूके पथ पर आरूढ़।
अलसित, हतास….
रहता हर पल मेरा गात,
जो करता हृदय आघात
विस्मृत मन है भ्रमित, उदास।
कविता ए झा
नवी मुम्बई




