
जीवन की संध्या पर खड़े हैं हम।
जीवन की यात्रा का अंतिम पड़ाव।
जीवन की धूप में जल चुके हैं दिए।
जीवन की रात में टिमटिमाते सितारे।
जीवन की यात्रा में मिला है हमको।
अनुभवों अनुभूतिओं का भरपूर पिटारा।
सुख-दु:ख ,हार -जीत के खेले कितने खेल।
हौसला ,जुनून,मोह, माया,स्वार्थ थे संग।
जीवन की संध्या बेला में ठोकर खाई।
हमसफर ने मझधार में अकेले छोड़ दिया।
बच्चों का अपना अपना घर संसार बस चुका।
संध्या की तन्हाई में अपने जज्बातों में सिमटना।
आश्रित अभिभावक बन कर अनुभव मिला।
जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार करें।
हमारे बच्चे हमारे अतीत को दुहरा रहे हैं।
हमारा वात्सल्य हृदय उन्हें आशीष देता रहे।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




