
वह रूप है अनोखा मन हो रहा दिवाना।
कान्हा कहें जिसे हैं दिल यह बना निशाना।
आँखें जिसे निहारें भजते उसे सभी हैं ।
संसार है उसी का सब ने उसे बखाना ।
लीला सभी उसी की जग देख आज हारा।
होना नहीं विकल मन कर ले वहीं ठिकाना।
मन चाहता जिसे है संसार का खिवैया।
भजमन उसे सदा ही अब मत समय गँवाना।
मनमें दया भरी है कहते सभी यही नित।
इतना करो दयामय जगपर दया दिखाना।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली




