
कार्तिक पूर्णिमा का पावन आलोक
गंगा तट पर दीप जले, नभ में उजियारा छाए,
देवों के संग धरा सजे, काशी कांति में नहाए।
घंटों, शंखों की गूंज उठे
“हर हर गंगे, जय शंभू!” गाए।
तरंगों में झिलमिल ज्योति, जैसे स्वर्ग उतर आया,
देव दीपावली का पर्व, पुण्य सुगंध लहराया।
श्रद्धा, भक्ति, सेवा का संगम,
आज धरा ने स्वर्ग पाया।
पूर्णिमा का यह पावन क्षण,
देता संदेश निराला
“रखो गंगा निर्मल, अविरल,
यही है जीवन का उजियाला।”
गंगा माँ की पावन धारा,
फुसफुसा उठी स्नेह हमारा
“मैं ही जीवन, मैं ही प्राण,
मुझमें बसता हिन्दुस्तान।”
और उसी दिन गूंज उठे
“सतनाम वाहेगुरु” के स्वर,
गुरु नानक का प्रेम संदेश,
करुणा, सत्य, श्रम का सागर।
देवों की दीपमाला संग,
गुरु का प्रकाश अमर हो जाए,
गंगा की लहरों पर आज,
धर्म और मानवता एक हो जाए।
“ॐ नमः शिवाय। हर हर गंगे। सतनाम वाहेगुरु।”
डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय



