
वाराणसी। बनारस जहां गंगा की धारा केवल बहती नहीं, बल्कि आत्मा को स्नान कराती है, जहां शब्द मात्र नहीं, मंत्र बन जाते हैं, और जहां हर कदम पर अध्यात्म का कंपन अनुभव होता है। दो दिनों का यह काशी प्रवास मेरे जीवन के सबसे अविस्मरणीय अनुभवों में एक रहा।
साहित्यिक कार्यक्रमों की गरिमा के साथ-साथ धार्मिक स्थलों के दर्शन और पूजन-अर्चन का जो अवसर प्राप्त हुआ, उसने इस यात्रा को केवल बाह्य नहीं, आंतरिक यात्रा भी बना दिया। बाबा विश्वनाथ के दरबार में नमन करते हुए लगा जैसे समस्त शब्द स्वयं मौन हो गए हों और भक्ति ही एकमात्र भाषा बन गई हो।

आदरणीय भुल्लकड़ बनारसी जी एवं काशी काव्य गंगा साहित्यिक मंच की पूरी टीम की आत्मीयता ने बनारस की पहचान अतिथि देवो भव को सार्थक किया मंच द्वारा हमारे सम्मान में गोष्ठी का आयोजन कर हमें सम्मानित किया गया । वहीं पं. अपूर्व नारायण तिवारी बनारसी बाबू के नेतृत्व में धार्मिक एवं सांस्कृतिक समन्वय की अद्भुत झलक देखने को मिली। उनका स्नेह, सरलता और कर्मनिष्ठ भाव अपने आप में प्रेरणास्पद है।
आ. सत्य प्रकाश पाण्डेय जी का सौहार्द और स्नेहपूर्ण आतिथ्य मेरे लिए विशेष रहा उन्होंने न केवल एक साहित्यकार का स्वागत किया, बल्कि एक साधक की भावना को भी सम्मान दिया।
साथ ही, प्रयागराज के वरिष्ठ साहित्यकार आ. हंसराज हंस जी से भेंट और उनके स्नेहिल मार्गदर्शन ने इस यात्रा को और भी अर्थपूर्ण बना दिया। साहित्यिक संवादों के बीच से जो विचार, जो अनुभूतियाँ निकलीं, उन्होंने मन में शब्दों के नए दीप प्रज्वलित कर दिए।
काशी के घाटों पर गंगा आरती का दृश्य, मंदिरों की घंटियों की अनुगूँज और साहित्यिक मित्रों का स्नेह इन सबने मिलकर इस यात्रा को स्मृतियों में स्थायी स्थान दे दिया है। यह प्रवास केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा की तीर्थयात्रा जैसा था जहाँ शब्दों ने गंगा में डुबकी लगाई और मन ने मोक्ष का स्पर्श पाया।
डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय
समूह सम्पादक




