साहित्य

खौफ

सौ, भावना मोहन विधानी

खौफ के साए में जी रहा हर इंसान,
जी नहीं सकता माहौल में सीना तान।
नर पिशाच के रूप में घूम रहे हैं सब,
ले जाते हैं पल में कई मासूमों की जान।

नश्तर सी चुभती है इनकी वहशी आंखें,
दिल को डरा जाती है इनकी बहकी बातें
नकाब ओढ़कर जाने कहां से आते हैं?
डर में कटते हैं सबके दिन और रातें।

नसीहत देना बहुत आसान होता है,
दुख होता है जब अपना कोई खोता है
निसंदेह इनसे बचना आसान नहीं,
इनके खौफ में हर कोई रोता है।

साहस का दीपक अब जलाना पड़ेगा,
समाज के नर पिशाचों को मिटाना पड़ेगा
फिर बनेगी हर जिंदगी गुलजार,
मौत की नींद हैवानों को सुलाना पड़ेगा।

सौ, भावना मोहन विधानी
अमरावती महाराष्ट्र

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