साहित्य

खेती है दुख डारन

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव

दंड पराली का झेलें,फिर मरें खाद के कारन।
मंहगा बीज,जुताई दुगुनी, नहीं कोई दुख हारन।

लाइन पर लाइन,दो बोरी खाद,रात भर जगनी।
साधन समिति दगा दे जाती,झूठी कथनी-करनी।
कृषि मंत्रालय झोंक रहा है प्रतिदिन सुख विज्ञापन।
सीज़न पर सब तंत्र फेल हैं,जस करनी तस भरनी।

क्रेडिट कार्ड कमीशन मंहगा,खेती है दुख डारन।
दंड पराली का झेलें फिर मरें खाद के कारन।।

जैविक खाद कहां से लाएं,पशुपालन व्यवधानित।
मर्ज बहुत पर दवा नहीं है,सब कुछ बे अनुमानित।
जोतनी मड़नी डीजल सिंचनी लागत मुंह फैलाए।
क्रय केंद्रों पर नहीं पहुंच,योजना भ्रष्टता सानित।

कृषि खबरों का झूंठ पुलिंदा निर्बल का जिय का जारन।
दंड पराली का झेलें फिर मरें खाद के कारन।।

कृषि दोयम दर्जे का धंधा,सूखा बाढ़ संघाती।
आवारा पशु फसल चर रहे,चूहे हैं उतपाती।
आमद से लागत ज्यादा,यह द्यूत खेल अनचाहा।
आजिज होकर जहर खा रहा,धरती मां का नाती।

लघु जोतों का कृषक अपाहिज दुखिया बसन उघारन।
दंड पराली का झेलें फिर मरें खाद के कारन।।

सतीश चन्द्र श्रीवास्तव
रामपुर मथुरा जिला सीतापुर

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