कूदे जमुना में कन्हैया, छप-छप जल मुस्काया,
मोर मुकुट चमका ऐसे, जैसे चाँद उतर आया।
बाल सखा सब हँसते बोले — “वाह श्याम बलैया,”
जमुना भी थम-थम बह बोली — “कितना सुंदर छैया।”
माखन की महिमा लेकर, बाँसुरी सुर में छलकी,
गोपियाँ तट पर आ बोलीं — “लीला यह अद्भुत चलकी।”
जमुना-जल मोती-सा चमके, कान्हा तैरें हुलसाए,
तरंगों संग प्रेम छलकता, वृंदावन रस गाए।
कूदे जमुना में कन्हैया, केसर-सी शोभा दे,
हर प्राणी तब गाता था — “जय नंदलाल, जय देव!”
सुदामा दूर खड़े बोले — “श्याम तेरी लीला न्यारी,”
कहाँ पकड़ूँ छवि तेरी, हर पल लगती प्यारी।”
नटखट मनमोहक कान्हा, लीला तेरी अविरत,
एक छलकते जल से भी, जग को दिया प्रेम-वरत।
जमुना, वृंदा, वृक्ष, ग्वाले, सबने दृश्य निहारा,
कन्हैया मुस्काते बोले — “प्रेम ही सारा सहारा।”
कूदे जमुना में कन्हैया, फिर बाँसुरी बजाई,
उस स्वर में था योग, भक्ति और प्रेम की परछाईं।
✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”



