साहित्य

कूदे जमुना में कन्हैया

योगेश गहतोड़ी "यश"

कूदे जमुना में कन्हैया, छप-छप जल मुस्काया,
मोर मुकुट चमका ऐसे, जैसे चाँद उतर आया।

बाल सखा सब हँसते बोले — “वाह श्याम बलैया,”
जमुना भी थम-थम बह बोली — “कितना सुंदर छैया।”

माखन की महिमा लेकर, बाँसुरी सुर में छलकी,
गोपियाँ तट पर आ बोलीं — “लीला यह अद्भुत चलकी।”

जमुना-जल मोती-सा चमके, कान्हा तैरें हुलसाए,
तरंगों संग प्रेम छलकता, वृंदावन रस गाए।

कूदे जमुना में कन्हैया, केसर-सी शोभा दे,
हर प्राणी तब गाता था — “जय नंदलाल, जय देव!”

सुदामा दूर खड़े बोले — “श्याम तेरी लीला न्यारी,”
कहाँ पकड़ूँ छवि तेरी, हर पल लगती प्यारी।”

नटखट मनमोहक कान्हा, लीला तेरी अविरत,
एक छलकते जल से भी, जग को दिया प्रेम-वरत।

जमुना, वृंदा, वृक्ष, ग्वाले, सबने दृश्य निहारा,
कन्हैया मुस्काते बोले — “प्रेम ही सारा सहारा।”

कूदे जमुना में कन्हैया, फिर बाँसुरी बजाई,
उस स्वर में था योग, भक्ति और प्रेम की परछाईं।

✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”

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