
अक्सर में जब भी रूह के अथाह, अद्भुत ख्याल , मेरी बेनसाह चिंता की सोचता हूं तो, मुझे फिल्म के महान कलाकार धमेंद्र की याद आती जिनकी एक अद्भुत फिल्म का अद्भुत दृश्य है कि, सदियों पहले किसी पहाड़ी पर धूमने निकले धर्मेंद्र को , वहां एक लड़की से मुलाकात होती है, दोनों एक दूसरे को देखते रह जाती है जैसे किसी ने अपनी परछाई को, अपनी आत्म को, अपने सामनेपाया, बस इतना उनकी कुछ बात, दो चार संवाद होते हैं और दोनों अपने अपने रास्ते घर चल देते हैं
धर्मेन्द्र उसे नही भूल पाते हैं और यही हाल उस लड़की के, सालो बाद
किसी आयोजन में धमेंद्र जाते है उनको पेयर लिस हो गया था और पैरों से चलना संभव नहीं था पर
उनके नौकर से आग्रह कर वह उस व्यक्ति के यहां जाते है जो उनका बचपन का दोस्त था , वहां उस लड़की से मुलाकात होती हैं
पेयरलिस में खड़े नही हो सकते, धर्मेंद्र उसे देखते हुए कब खड़े हो जाती हैं उन्हें नहीं पता, वाह लड़की और वहां खड़ी अथाह भीड देखती रह जाती हैं यह अद्भुत नजारा
यह है वह ईश्वर कृपा रूह स्नेह प्यार और आशीष, जिसे देख कर ही जिस्म में, दिल और दिमाग में जान आ जाती हैं और इंसान इतिहास रच डालाता है ,
सचमुच वंदनीय है वह ईश्वर रूह सत् सत् प्रणाम करता हूं सदा ही हर पल समय जिसे साथ पाते हुए जिंदा हूं और सोच हैरान हूं कि कलम रुकने के नाम ही नहीं लेती फिर थक भी जाती है पर हाथ तेज गति से दौड़ते हैं जैसे कम्प्यूटर चल रहा है और यह सच एक दिन मेरे साथ पास खड़ी रूह ने देखा और मुस्कान लिए बोल था यह हाथ है या कंप्यूटर है चौक जाती हैं और अरे कमाल के हाथ चलते,,,,, जैसे यह बोल कर उसने आशीष दे दिया
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश



