
लिखने का जरिया बन जाते हैं सदा दर्द!
जो मुख से हो न पाता प्रस्फुटित,
लेखनी कर देती है बयाँ स्फुरित गति से।
अंतर्तम के भाव आ जाते हैं उभर के पृष्ठों पर,
सदा के लिए संजोकर टंकित हो जाते हैं,
कहानी, कविता का रूप धर के।
धरोहर बन जाते हैं नई पीढ़ी के।
ये ज़िन्दगी के दर्द कभी उभरते हैं रहनुमा बनके।
दर्दों का फलसफा भी होता है अजीब।
जब दर्द दिल के दवा बनने का कर जाते हैं काम।
दर्द सदा लिखवा ही देतें हैं कुछ नया,
आ जाती है दिल के करीब वह लिखावट,
दे जाती है हर हाल में अधरों को मुस्कराहट।।
सुषमा श्रीवास्तव
रूद्रपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड।




