
वर्तमान समय में भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप की बढ़ती प्रवृत्ति एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। यह मात्र एक व्यक्तिगत विकल्प न रहकर एक विस्तृत सामाजिक समस्या का रूप धारण कर चुकी है, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने पर तुली हुई है।
सामाजिक मूल्यों के ह्रास की यह प्रक्रिया अत्यंत चिंताजनक है। पारंपरिक विवाह संस्था की पवित्रता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। पारिवारिक बंधनों में दरार आ रही है और वैवाहिक प्रतिबद्धता की भावना लुप्त हो रही है। आज का युवा वर्ग क्षणिक सुख और अस्थायी स्वतंत्रता को स्थायी संबंधों पर तरजीह देने लगा है। इससे समाज में पलायनवादी प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिम्मेदारी की भावना कम हो रही है और भावनात्मक अस्थिरता के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
महिलाओं के संदर्भ में यह प्रथा और भी विनाशकारी सिद्ध हो रही है। समाज में उन्हें निरंतर अपमान और उपहास का शिकार बनना पड़ता है। पारिवारिक सहारे के अभाव में उनकी स्थिति दयनीय हो जाती है। संबंध विच्छेद की स्थिति में उन्हें गहन आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। भविष्य के लिए सुरक्षा के अभाव में उनकी दशा और भी शोचनीय हो जाती है। इसके साथ ही मानसिक उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार का भय उनके जीवन को दूभर बना देता है।
कानूनी पक्ष की बात करें तो यह प्रथा अनेक जटिलताएँ उत्पन्न कर रही है। संपत्ति के अधिकारों के संबंध में स्पष्ट नियमों का अभाव है। उत्तराधिकार के मामलों में नई समस्याएँ उभर रही हैं। चिकित्सीय आपात स्थिति में निर्णय लेने के अधिकार जैसे मुद्दे अनिर्णीत हैं। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ से वंचना की स्थिति विद्यमान है।
इस गंभीर समस्या के निवारण के लिए तात्कालिक शैक्षिक पहल आवश्यक है। युवाओं को संस्कारयुक्त शिक्षा देकर पारिवारिक मूल्यों का वास्तविक महत्व समझाना होगा। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को उचित मार्गदर्शन दें और पारिवारिक संबंधों की महत्ता से अवगत कराएँ। सामाजिक जागरूकता के माध्यम से लिव-इन रिलेशनशिप के दुष्परिणामों पर विस्तृत चर्चा आवश्यक है। समाज के विचारशील वर्ग को आगे आकर इसके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जनसामान्य को जागरूक करना होगा।
व्यापक सामाजिक प्रभाव की बात करें तो इस प्रथा से सामुदायिक जीवन में बिखराव की स्थिति उत्पन्न हो रही है। सामाजिक मानदंड कमजोर पड़ रहे हैं और पारस्परिक विश्वास में कमी आ रही है। धार्मिक और सांस्कृतिक मर्यादाओं का उल्लंघन हो रहा है, चरित्र निर्माण में बाधा उत्पन्न हो रही है और सामाजिक अनुशासन की अवहेलना हो रही है।
लिव-इन रिलेशनशिप की प्रथा भारतीय समाज के समक्ष एक गंभीर संकट के रूप में उपस्थित है। इससे न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक मूल्य संकटग्रस्त हैं, बल्कि युवा पीढ़ी का भविष्य भी संदिग्ध हो रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक मूल्यों की सुरक्षा करें और युवाओं को स्थिर, स्थायी और उत्तरदायी संबंधों का महत्व समझाएँ। केवल इसी प्रकार हम एक स्वस्थ, सबल और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं। यदि समय रहते हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे और आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
डॉ सुरेश जांगडा
राजकीय महाविद्यालय सांपला
रोहतक (हरियाणा)




