साहित्य

माई के अस केहू

विजय चन्द्र त्रिपाठी

माई के अस केहू नांहीं ए दुनियाँ में बाटे,
जे ल इकन के दुखमेंजगते-जगते रतिया काटे,
हरदम सपना सुख के देखे अपनी संसति खाति
ल इका-ल इकी एके माने
हंसि के छतिया साटे।

हाथी घोड़ा बनि के माई बाबू रोज खेला वें,
अंखियन की पुतरी में दूनों राजा-रानी
डाटें।
देखि देखि के हरषित होखे दूसर केहू
नाहीं,
घिउओ के गगरी गिरला पर ना बचवन के डांटें

माई के ज,इसन भगवान न कवनो चीज बनवलें
दूसरकवनो ढांचा माई के ज इसन ना बाटे।

उलझि मुलझि ग, इलें भगवान अपनिये कृति में अपने
माई ज इसन फिर रचना के कवनो यन्त्र न बाटे।

विजय चन्द्र त्रिपाठी

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